जैसे सूरज ने खोल दिए हों चितवन झूम उठी है धरती गगन
धरती नभ थल में फैल गई दिनकर की स्वर्णिम किरण
खिल उठी कलियां पेड़ों पर झूम रही डाली डाली आ गई देखो बसंत ऋतु मतवाली
बासन्ती चुनर ओढ़े धरती, पीली पीली सरसों फूली लहलहा रहे खेत खलियान झूम रहा देखो किसान
मां सरस्वती धारे श्वेत वसन कर रही मधुर वीणा गायन कर लें हम भी कुछ वंदन धार कर मन में धीरज वरण प्रकृति ने खूब सुंदर छटा बिखेरी खिल उठी पुष्पों की सुगंधित क्यारी
शीत ऋतु का हो रहा धीरे धीरे गमन प्रकाश सूर्य का चमक रहा
नभ थल गगन
थम गया देखो शीत ऋतु का करुण क्रंदन
आ गया ऋतुराज बसंत का स्वर्णिम चरण पीले पीले पुष्प चढ़ा कर कर लें मां शारदे के चरण वंदन बसंत पंचमी लेकर आई खुशियों की मधुरिम वसंत
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