उर्मिला की विरह वेदना

रघुनंदन के साथ साथ में,सीता वन को जाती है,

क्या वन में जाकर नाथ,कुछ याद न मेरी आती है ।

तुमको तुम्हारी उर्मिला,हर पल हर क्षण बुलाती है,

मेरे हिय की विरह बेदना,क्या तुमको नही सताती है।।

वो जाने कैसे वन में रहते होंगे,

वो शीत, धूप सब सहते होंगे ।

जब आते होंगे गरज के बादल,

फिर कैसे उनसे बचते होंगे ।।

महलों की रानी जनक दुलारी,

हंस कर सब सहती जाती है ।

हाय नियति को तनिक भी,

क्या दया न उन पर आती है ।।

रघुनंदन के साथ साथ में,सीता वन को जाती है,

क्या वन में जाकर नाथ,कुछ याद न मेरी आती है

मुझको भी संग में तुम ले जाते,

मैं अपने मन की कुछ कह पाती

तुम सिय रघुवर की सेवा करते,

मैं चरणों का वंदन कर पाती ।

अब मन मे विरह की पीर उठी,

ये हरपल ही मुझको रुलाती है ।।

हे उर्मिलानाथ, उर्मिला तुम्हारी,

जल बिन मीन नजर आती है ।।

रघुनंदन के साथ साथ में,सीता वन को जाती है

क्या वन में जाकर नाथ,कुछ याद न मेरी आती है

सूना सूना सा अवध अब लागे,

कैसे भाग्य अब हुए अभागे ।

पिया गए है सांसों को लेकर,

फिर भी प्राण नही अभी त्यागे,

वो गई पूनम की रात सुहानी,

अब अमावस सा संसार लगे

आंसू भी सूख गए नैनो से,

सिसकी अब ह्रदय दुखाती है ।।

रघुनंदन के साथ साथ में,सीता वन को जाती है,

क्या वन में जाकर नाथ,कुछ याद न मेरी आती है।।

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • अनूप अंबर

    नाम : अनूप अंबर जन्म तिथि:01जनवरी 1991 पिता का नाम:राजेश कुमार पता: फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेशइनके नौ साझा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, पच्चीस अर्थलोगी प्रकाशित हो चुकी है, विभिन्न मंचों से 150 से अधिक सम्मान पत्र प्राप्त है, इनकी विभिन्न रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है,ये कई साहित्य पटलों पर सक्रिय है ।। Copyright@अनूप अंबर / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!