उम्र जैसे भी कटे पर ज़िन्दगी सुन्दर लगे

तीर जितने उसने मारे सब निशाने पर लगे ।

ज़ख्म सब के सब पुराने ज़ख्म से बेहतर लगे ।

हो गया है जाने मुझको क्या अभी कुछ रोज़ से ।

आशियाँ उसका जो देखूँ मुझको अपना घर लगे ।

ये करिश्मा है ख़ुदा का या मुहब्बत का नशा ।

जब से उसको पा लिया है , हौसलों को पर लगे ।

हम भले ही नींद खो बैठे सुखों की भीड़ में ।

वो तो मेहनतकश है उसको ये ज़मीं बिस्तर लगे ।

जब कभी सच बात कहने को हुआ बेचैन दिल ।

एक झटके में हमारी पीठ से ख़ंजर लगे ।

सिर्फ़ लहज़ा ही तो बदला था अभी उस शख़्स ने ।

लफ्ज़ जो के फूल थे वो एक दम पत्थर लगे ।

इस तरह जी कर भी देखो अब ज़रा “कमलेश” तुम ।

उम्र जैसे भी कटे पर ज़िन्दगी सुन्दर लगे ।

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रचनाकार

Author

  • कमलेश श्रीवास्तव

    कमलेश श्रीवास्तव पिता-श्री शिवचरण श्रीवास्तव माता-श्रीमती गीता देवी श्रीवास्तव जन्म तिथि- 14 अगस्त 1960,श्री कृष्ण जन्माष्टमी जन्म स्थान- सिरोज, जिला विदिशा, म.प्र. शिक्षा-एम.एससी.(रसायन शास्त्र) साहित्यिक गतिविधियाँ- आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी उर्दू काव्य मंचों पर काव्य-पाठ| कृतियाँ/प्रकाशन- नवगीत संग्रह समांतर-3, गज़ल संग्रह "वक्त के सैलाब में" एवं गज़ल संग्रह "क्या मुश्किल है" का प्रकाशन सम्प्रति- शाखा प्रबंधक एम.पी. वेअर हाऊसिंग एण्ड लॉजिस्टिक्स कार्पोरेशन शाखा पचौरी, जिला-रायगढ़ में शाखा प्रबंधक के रूप में पदस्थापित| संपर्क सूत्र- 269"धवल निधि" बालाजी नगर,पचौर, जिला- रायगढ़, म. प्र.,पचौर 465683 मो-09425084542 email-kamlesh14860@gmail.comCopyright@कमलेश श्रीवास्तव / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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