तीर जितने उसने मारे सब निशाने पर लगे ।
ज़ख्म सब के सब पुराने ज़ख्म से बेहतर लगे ।
हो गया है जाने मुझको क्या अभी कुछ रोज़ से ।
आशियाँ उसका जो देखूँ मुझको अपना घर लगे ।
ये करिश्मा है ख़ुदा का या मुहब्बत का नशा ।
जब से उसको पा लिया है , हौसलों को पर लगे ।
हम भले ही नींद खो बैठे सुखों की भीड़ में ।
वो तो मेहनतकश है उसको ये ज़मीं बिस्तर लगे ।
जब कभी सच बात कहने को हुआ बेचैन दिल ।
एक झटके में हमारी पीठ से ख़ंजर लगे ।
सिर्फ़ लहज़ा ही तो बदला था अभी उस शख़्स ने ।
लफ्ज़ जो के फूल थे वो एक दम पत्थर लगे ।
इस तरह जी कर भी देखो अब ज़रा “कमलेश” तुम ।
उम्र जैसे भी कटे पर ज़िन्दगी सुन्दर लगे ।
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