जिंदगी के इस सफ़र की,कब सुबह और रात कब l
सोचता है लूट कर, कैसी रही वह रात कल l
आया नहीं, कोई भी मक़्सूद देखो इस तरफ (महबूब)
बिखरे रहे जज़्बात तन्हा, उनकी चौखट रात भर ll
टूट कर बिखरा मगर हिम्मत नहीं हारी कभी,
राह पर बढ़ धीरे धीरे, जीत ली बाजी सभी ll
घाव का खुद मलहम बन खुद को संभाला हर घड़ी,
बदकिस्मती से युद्ध में, हिम्मत लड़ी , हिम्मत लड़ी ll
सारे तजुर्बे वक्त की आग में पकते रहे,
ख़्वाब आँखों में कभी जलते रहे बुझते रहे l
आँधियाँ आयी गयी, छप्पर सलामत रह गए,
हौसले और धैर्य के कंधे बराबर रह गए ll
पा की दुआयें पैर बन चलती रहीं मंजिल तलक,
माँ की दुआयें उम्र भर , चूमती रहीं मेरी पलक l
अपनों ने ऊंगली थाम कर, मुश्किल में अपना हाथ रख
रखता गया अपने कदम,कभी इस फलक कभी उस फलक ll
देखे जाने की संख्या : 349