इजहार एक दिन

कमबख्त दिल से हो गये लाचार एक दिन।

मैंने भी किया इश्क का इज़हार एक दिन।।

एक खूबसूरत कली मेरे दिल को भा गई थी

अपनी अदाओं से हमें पागल बना गई थी।

इतना बुरा नही हूं ये बात खल रही थी।

कुछ गुफ्तगू करने की ख्वाहिश मचल रही थी।।

कुछ ज्यादा हो गये हम बेकरार एक दिन।।

मैंने भी०

माता पिता की इज्ज़त का ख्याल हो रहा था।

पर क्या बताऊं मेरा बुरा हाल हो रहा था।

कई दिन गुजर गये थे वो नज़र नहीं आई।

दीदार न होने से मेरी चिन्ता बढ़ी भाई।

मुझे खाये जा रहा था इंतज़ार एक दिन।।

मैंने भी०

पढ़ाई में मन मेरा अब नहीं लग रहा था।

नींद भी न आती सारी रात जग रहा था।

सुमिरन देवताओं की मैं किये जा रहा था।

इश्क का दिया मेरा जिगर जला रहा था

रास्ते में मुझे मिल गई बहार एक दिन।।

मैंने भी०

मैने कहा जी बुरा न लगे तो कुछ मैं बोलूं।

दिल बहुत बेचैन है दरवाजा इसका खोलूं।

आपकी गली में मेरा चैन खो गया है।

उसने कहा भाई जी निकाह हो गया है।

सपने हुये सब शेष तार तार एक दिन।।

मैंने भी०

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रचनाकार

Author

  • शेषमणि शर्मा 'शेष'

    पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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