आ गया मधुमास फिर से आ गया
शाख पर कोपल उगी
फिर सुनी पदचाप जब मधुमास की
डाल मेहंदी कि कहीं शरमा गई
है सुगंधित दूर तक अमराइयाँ वनवीथि में
डाल टेसु की लजीली हो गई
आज आमंत्रण धरा का सुन कहीं
आकाश भी आ झुका नजदीक है
गीत गा अनुबंध का फिर धरा के कान में
एक बैरागी पवन सा छा गया
आ गया मधुमास फिर से आ गया
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