घिरे हुए अंतर तन मन में ज्ञान प्रेम की ज्योति जलाएँ
रहे अंधेरा कहीं नहीं अब जग में उजियारा फैलाएँ
मैंले कुचले दबे हुए जो उनमें भी आशा भर जाएँ
करें प्रकाशित सबका जीवन अंधकार सब यहां मिटाएँ
बुझे न दीपक कभी किसी का सब में ऐसी ज्योति जलाएँ
दूर अंधेरा करें जगत का आओ हम सब दीप जलाएँ
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