आंखों में तुझको देखा है

आंखों में तुझको देखा है

मैंने आंखों में तेरे एक ख्वाब देखा है

हुस्न ए रूप में भी आफताब देखा है

जिंदगी में अगर होते तो हम सवर जाते|

जिंदगी को बिना तेरे विखरते देखा है

जब भी सोचू कि तुमसे इक सवाल कर जाऊं

हर इक सवाल को जवाब बनते देखा है

ऐसी सम्मा जो कर दे अपनी मोहब्बत रोशन

तुझ में वो जलता चराग देखा है

बहार भी कभी पतझड़ में बदल जाते हैं

तुमको गिरगिट की तरह से बदलते देखा है

मुझको तो ये जमीन आसमा नजर आए

चांद को जबसे जमी पर उतरते देखा है

हसीन चेहरा तेरी नूर भरी आंखों को

सदा पलट के मैने बार बार देखा है

कमी नहीं है तेरी बेशुमार आंखों में

मैंने हर बार ही आंखों में तुझको देखा है

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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