आंखों का सागर

देखा मैंने सागर को जब तेरे इन दो नैनों में
भाव मेरा तो भावुक होकर डूब गया तेरे नैनों में
सागर की क्या गहराई होगी जितनी तेरे नैनों में
उतना रत्न नहीं सागर में जितना तेरे नैनों में
छलक गया जब आंसू बनकर सागर पीछे छूट गया
तड़प उठी सीने के अंदर भाव में जब-जब डूब गया
सागर तो केवल बदन डुवोता मन को डुवोता आंसू है
सागर तो नदियों से भरता भाव से भरता आंसू है
लालसा सदा ही दोनों की पाने को हरदम होती है
सागर सिर को पटकता रहता मौन सी आंखें होती हैं
सागर तेरा पानी खारा बूद आंख की प्यारी है
आंखों के सागर की लीला पूरे जग से न्यारी है

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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