जा रहा हूं तेरे शहर को अलविदा कहकर
और न रह पाएंगे तेरे शहर में
हम खफा होकर
जा रहा हूँ तेरे सहर को
अलविदा कहकर
अब और नहीं सह पाएंगे
नखरे तुम्हारे
अब और नहीं कुछ
चाहिए एहसान तुम्हारे
मैं था ना तेरे लिए एक चुभता कांटा !
तो जा रहा हूँ तेरे राह से
मुसाफिर बन कर ।
जा रहा हूँ तेरे शहर को
अलविदा कहकर।
मैने जीवन में तेरे लिए
कितना अपमान झेला था ?
दिल के टुकड़े सौप कर
तुझे अपना कहा था ।
मगर अब हुआ ये खेल दी एण्ड
अब और नहीं नजर आएंगे
तेरे आंखो में काजल सा उभरकर ।
जा रहा हूंँ तेरे शहर को अलविदा कहकर।
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