अलख जगाता रहता हूं

सा पंथ लिखा है मैंने वैसा जीवन जीता हूं
प्रेम भाव में डूब के हरदम रस अमृत का पीता हूं
साथ कभी तो चल कर देखो कितनी प्यारी दुनिया है
कर्म ही जीवन का रस होता वो बतलाती गीता हूं
प्रेम भरा है दर्द भरा है सुख-दुख सबका सुनता हूं
उमड़ रहे उजले भावो का बिंब दिखाता शीशा हू
सदा ही मरहम बना जख्म का भावो से ही लेप किया
प्रेम भरे भावो से ही मैं घाव सभी का भरता हूं
खुशबू से महकाया जग को प्यार जगा करके दिल में
एक बार जो जगा भाव तो जीवन भर ना सोता हूं
सबका जीवन जीवन है सुख-दुख तुम सबका समझो
सबके दिल में प्रेम भाव का अलख जगाता रहता हूं
सत्य असत्य समझ कर के ही साथ सत्य का देता हूं
जीत सदा मानवता की हो शंखनाद ये करता हूं

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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