सा पंथ लिखा है मैंने वैसा जीवन जीता हूं
प्रेम भाव में डूब के हरदम रस अमृत का पीता हूं
साथ कभी तो चल कर देखो कितनी प्यारी दुनिया है
कर्म ही जीवन का रस होता वो बतलाती गीता हूं
प्रेम भरा है दर्द भरा है सुख-दुख सबका सुनता हूं
उमड़ रहे उजले भावो का बिंब दिखाता शीशा हू
सदा ही मरहम बना जख्म का भावो से ही लेप किया
प्रेम भरे भावो से ही मैं घाव सभी का भरता हूं
खुशबू से महकाया जग को प्यार जगा करके दिल में
एक बार जो जगा भाव तो जीवन भर ना सोता हूं
सबका जीवन जीवन है सुख-दुख तुम सबका समझो
सबके दिल में प्रेम भाव का अलख जगाता रहता हूं
सत्य असत्य समझ कर के ही साथ सत्य का देता हूं
जीत सदा मानवता की हो शंखनाद ये करता हूं
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