अपने-बेगाने

रोजाना दौड़-धूप करने के बाद तृप्ति को नये शहर में रहने का ठिकाना मिल पाया। अपने जिले के विद्यालय में नियुक्ति मिलने के बाद से ही उसने शहर के गर्ल्स हॉस्टल एवं मेस आदि में अपने लिए जगह ढूढ़नी शुरू कर दी थी। पर कहीं भी उसे अपने लिए मनपसंद कमरा नहीं मिल पा रहा था।

उसके विद्यालय की अध्यापिका मिसेज शर्मा ने उसे बसंत कॉलोनी की अपनी एक पूर्व परिचित मिसेज सोनी के घर भेजा था।

डरती-घबराती तृप्ति ने ज्यों ही मिसेज सोनी के घर दस्तक दी, उसके सामने भारी-भरकम शरीर की गंभीर व सलीकेदार घर की मालकिन आ खड़ी हुई। 

“मैं हूं मिसेज सोनी। मिसेज शर्मा ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया है। एक कमरा मिलेगा। साथ ही अटैच्ड बॉथरूम व बरामदा भी है। कमरे की दूसरी चाभी मेरे पास रहेगी। पानी और बिजली का बिल लेकर तीन हजार रुपये देने होंगे। मंजूर हो तो ठीक है।”

एक ही सांस में उस महिला ने सारी बात कह डाली थी। तृप्ति अचरज में थी कि अब तक वह बाहर ही खड़ी थी और उसने अपने रहने का कमरा भी देखा नहीं था और ना ही उस महिला ने तृप्ति से कमरा देखने को कहा।

“पर मैडम मैं कमरा देख लूं।”

“हां, हां.. जरूर!” उस महिला ने कुछ गहरी नजरों से तृप्ति को परखते हुए अंदर आने की अनुमति दी।

“मुझे पसंद है, पर किराया…” तृप्ति ने कुछ असमंजस की हालत में कहा।

“तुम कितना दे सकती हो?” महिला कुछ नम्र हुई। अपने आंचल से चेहरे के पसीने को पोंछती हुई उसने यह कहा।

“मैं दो हजार तक… दरअसल अभी-अभी तो यहां के जिला विद्यालय में नियुक्ति मिली है। अभी मैं तीन हजार किराया नहीं दे सकती।”

“हम्म… ठीक है। पर ज्यादा शोरगुल मत करना। अकेली ही रहना, दोस्तों को यहां बिल्कुल नहीं लाना। हां आने से पहले एक हजार एडवांस दे देना!” महिला ने स्पष्ट कहा।

तृप्ति वहां से निकलकर मिसेज शर्मा के घर गई। उन्होंने तृप्ति को ठिकाना मिलने की खुशीं में बधाई दी और मिसेज सोनी के बारे में बताया कि उसके पति रिटायर्ड क्लर्क है। दो जवान बेटे पढ़-लिख कर अमेरिका व लंदन में काम कर रहे हैं।

सोनी परिवार शांति से रह रहा था। उन्हें कोई शोरगुल पसंद नहीं था। पर अकेलेपन को थोड़ा दूर करने के लिए ही मिसेज सोनी ने तृप्ति को एक कमरा किराये पर दे दिया था।

कमरे में अपना सामान पटकने के बाद तृप्ति ने एक गहरी सांस लेकर ईश्वर को धन्यवाद दिया। खिड़की से बाहर झांकने पर उसे कुछ दूरी पर खड़ा आम का पेड़ उसे अपने स्वागत में हिलता हुआ सा लगा था। पड़ोस की कुछ स्त्रियों ने उत्सुकतावश अपने कमरे से थोड़ा झांका। तृप्ति कुछ लापरवाह किस्म की लड़की थी। दो दिनों तक तो उसकी किताबें व सामान जमीन पर ही पड़े रहे।

तृप्ति को जब किसी किताब की जरूरत होती तो वह उठा लेती और फिर उसे सेल्फ के एक कोने में रख देती। अपना ज्यादा समय तो वह विद्यालय को देती या फिर किताबों को। अकेली होने के कारण अक्सर बाहर खाती या फिर ब्रेड-बटर, सलाद जैसी चीजों से काम चला लेती। 

रोज वह सुबह विद्यालय निकल जाती तो मिसेज सोनी की कामवाली बाई उसका कमरा साफ करने को आती। दो दिनों के बाद भी जब उसका सामान कमरे में इधर-उधर पड़ा रहा था तो कामवाली बाई चंदा ने मिसेज सोनी से शिकायत कर दी।

शाम को तृप्ति के आते ही मिसेज सोनी उससे बोल पड़ी, “तृप्ति अपना सामान तुमने अभी तक ठीक से संभाला नहीं है। देखो, मुझे यह लापरवाही या गंदगी एकदम पसंद नहीं। तुम जानती हो इस कमरे के सामने से होकर ही हमें अपने बेडरूम की ओर जाना पड़ता है। सब कुछ दिखाई देता है। मेरे यहां रहना है तो ऐसे नहीं चलेगा।” 

“सॉरी, मैडम! मैं सब ठीक करने की कोशिश करूंगी।” तृप्ति ने अपने कंधे के बैग को बिस्तर पर पटकना चाहा पर मिसेज सोनी का चेहरा देखकर, सहमी सी, शेल्फ पर अपना बैग रखने को विवश हो गई।

अभी वह मिसेज सोनी से बिल्कुल बात करने के मूड में नहीं थी और तभी मिसेज सोनी के बेडरूम में मोबाइल की घंटी के बजने से वह आश्वासित सी हो गई। अपने भारी-भरकम शरीर पर सलीके से बांधी गई साड़ी को संभाले मिसेज सोनी फोन उठाने को तत्पर हुई।

“तृप्ति, तुम्हारा फोन है।” कुछ ही पलों के बाद मिसेज सोनी का स्वर सुनाई पड़ा था। तृप्ति भागकर उनके कमरे की ओर गई।

“ओ… मम्मा! मैं अच्छी हूं। हां-हां सब सेटल हो गया है।

मिसेज सोनी, हां, बहुत अच्छी है। बिल्कुल अपनी-सी! हां, ख्याल रखती है! सब ठीक है! मम्मा, तुम कब आओगी? आते वक्त लौकी का हलवा और हां कटहल का अचार भी ले आना। ठीक है मम्मा, मैं बाद में तुमसे बातें करूंगी! बाय! अपना ख्याल रखना!

तृप्ति के कहे गये अंश मिसेज सोनी बाहर खड़ी होने पर भी सुन रही थी। उनकी नजर फ्लैटों के ऊपर से झांकते खामोश आसमान पर थी। तृप्ति की बातचीत खत्म हो गयी थी कि अचानक आसमान किसी हवाई जहाज के शोर से भर उठा था। तृप्ति कमरे से बाहर निकली तो मिसेज सोनी की नजर उस हवाई जहाज पर थी। अचानक तृप्ति को लगा कि उनकी आंखों में कुछ गीलापन झिलमिला उठा है।

तृप्ति थम सी गई। हवाई जहाज के गुजर जाने के बाद मिसेज सोनी को जैसे अपने आसपास का ध्यान आया। मलीन पड़ गये चेहरे को उन्होंने कुछ सामान्य बनाने की कोशिश में तृप्ति की ओर देखा। अपने गले में उन्होंने कुछ अटका सा पाया पर पल भर में सब कुछ सामान्य करने में कामयाब हो गयीं।

“आ… प…? तृप्ति कुछ पूछना चाह रही थी पर उसकी हिम्मत ना हो सकी।

“मम्मी को नंबर किसने दिया था?”

“वह मैंने… सोचा जरूरत पड़ने पर मम्मी बात कर सकेंगी” तृप्ति के अल्फाज कांप उठे थे। मिसेज सोनी ने अपना फोन नंबर अभी तक तृप्ति को नहीं दिया था इसलिए उनके चेहरे पर जैसे झल्लाहट थी।

“क्या तुम इस घर में रहना चाहती हो? देखो, मैं बेहद सख्त स्वभाव की हूं। तुमने मुझसे पूछे बिना अपनी मम्मी को मेरा फोन नंबर कैसे दे दिया? आगे से ध्यान रखना, मुझसे पूछे बिना, कुछ भी नहीं कर सकती हो।” मिसेज सोनी के चेहरे के भाव और कहने के ढंग से तृप्ति झल्ला तो गई ही थी। उसके मन में आया कि अभी तुरंत इस घर से निकल जाये। पर दूसरे ही पल अपनी आर्थिक स्थिति का ध्यान कर रुक गयी।

“सॉरी मैडम! आगे से ध्यान रखूंगी। मैं मम्मी से भी मना कर दूंगी”

“इसकी जरूरत नहीं है। तुम्हारी मम्मी फोन कर सकती है। मेरे बेटे फोन नहीं करते तो क्या! तुम अपनी मम्मी से बात कर सकती हो।” अपने शब्दों को धीमा कर मिसेज सोनी जैसे कोई दुःख शेयर करते-करते ठहर सी गयी। तृप्ति ने उलट कर देखा, वह अपने कमरे की ओर बढ़ गयी थी।

तृप्ति ने बरामदे में धीरे-धीरे फैलते अंधेरे को दूर करने की कोशिश में रोशनी के स्विच को ऑन कर दिया।

बरामदे के अंतिम सिरे पर मिसेज सोनी के दोनों बेटों का कमरा था। वो कमरे बंद ही रहते थे शायद! दरवाजे के बाहर टंगे पर्दे हवा के झोंकों से जैसे सिहर उठे और तृप्ति ने देखा खामोश ताले जैसे कई वर्षों से उन कमरों पर पहरा दे रहे हो।

दूसरे दिन सुबह, किसी तरह अपना काम निपटाकर विद्यालय जाने के लिए तृप्ति तैयार हुई थी कि चंदा ने आकर खबर दी कि मिसेज सोनी उसे डाइनिंग रूम में बुला रही है। वहां उनके पति को तृप्ति ने पहली बार देखा। एक सीधे, सहज व्यक्ति। पेपर पर उनकी नज़रें थी। 

“जी, आपने बुलाया!” तृप्ति की आंखों में जिज्ञासा थी।

“तुमने कुछ खाया? मिसेज सोनी की आवाज में जिज्ञासा थी या नरमी, तृप्ति को समझ में नहीं आया।

“ना, नहीं। मैं विद्यालय के कैंटीन में खा लूंगी।” तृप्ति की नजरों के सामने, डाइनिंग टेबल पर रखे व्यंजन मचल उठे। पर उसने नजरें तुरंत हटा ली।

“हमारे साथ खा लो।” मिसेज सोनी ने प्लेट निकलते हुए बिना किसी औपचारिकता के कहा।

“क्या?” तृप्ति चौंक उठी। फिर डरते हुए उसने कहा, आप तकलीफ ना करें। मैं बाहर खाने की आदी हूं।”

“मैंने कहा ना, बैठ जाओ।” मिसेज सोनी का स्वर कुछ आदेशात्मक था।

तृप्ति की नजरें एक ओर बैठे मिस्टर सोनी की ओर गई जिनके होठों के कोरों पर मुस्कान मचल उठी थी। उनकी नजरों में जैसे प्यार भरा निमंत्रण हो। पर मिसेज सोनी को देखकर तृप्ति कुछ समझ नहीं सकी थी। कभी तो वह एकदम रूखी, अनुशासनप्रिय, कर्कश लगती और दूसरे ही पल जैसे अपने प्यार के इजहार को जबरन रुकते हुए महसूस होती।

तृप्ति को मिसेज सोनी ने पेट भर नाश्ता कराया था। जाने लगी तो फिर उन्होंने टोका, “अपने कमरे की बत्तियां ऑफ कर जाना, बेवजह बिजली का बिल बढ़ेगा। कल तुमने बॉथरूम तक की बत्ती का स्विच ऑफ नहीं किया था।” 

“सॉरी!” मिस्टर सोनी के सामने तृप्ति अपनी गलती पर शर्मिंदा हो उठी थी।

“ठीक है।” अभी उसे अकेले रहने का अनुभव नहीं। धीरे-धीरे सीख जायेगी। मिस्टर सोनी ने बचाव किया था।

मिसेज सोनी ने एक बार उनकी ओर देखा और दूसरे ही पल तृप्ति की ओर टिफिन का डिब्बा बढ़ाते हुए बोली थी, “यह डिब्बा रख लो।” 

“मैं, ये?” तृप्ति के शब्द गले में अटक रहे थे और उसका हाथ एक बार आगे बढ़कर पीछे हट गया था।

“रख लो। अगर बुरा लगता है तो किराये के साथ इसके भी रुपये दे देना। बाहर का खाना हमेशा खाना ठीक नहीं।” 

असमंजस की हालत में खड़ी तृप्ति ने फिर एक बार कांपते हाथों से डिब्बा रख लिया।

लंच टाइम में कैंटीन में बैठी तृप्ति ने टिफिन का डिब्बा खोला तो लौकी का हलवा देखकर दंग रह गयी। खुशीं की लहर के साथ उसकी आंखों में पानी भर आया।

एक बार उसका जी किया कि दौड़कर फोन से मिसेज सोनी को शुक्रिया कह दे, पर रुक गयी। मिसेज सोनी जब-तब अपने घर फोन का आना पसंद नहीं करती। अगर उन्हें बुरा लगा तो टिफिन के डिब्बे के साथ-साथ कमरा भी छिन जायेगा।

पर तृप्ति की समझ में यह नहीं आ रहा था कि जहां एक ओर मिसेज सोनी ममता बरसाती है वहीं वह कठोर शिला क्यों है?

सप्ताह भर हो गया था तृप्ति को, मिसेज सोनी के घर रहते। इस बीच कभी भी मिसेज सोनी के बेटों का फोन नहीं आया था, ना ही वह बेटों का जिक्र कभी भूले-बिसरे ही करती।

एक शाम मिस्टर सोनी अपने बरामदे में बैठे कोई किताब पढ़ रहे थे। आसपास मिसेज सोनी की कोई आहट नहीं थी। गर्मी की कुछ उमस भरी शाम थी। कुछ दूरी पर नीम का पेड़ चुपचाप खड़ा था। तृप्ति का जी कमरे की उमस से घबरा उठा था।

पहले तो वह अपने कमरे की रेलिंग थामें शहर की भाग-दौड़ को देखती रही। फिर जाने क्या सोचकर मिस्टर सोनी की ओर चली गई।

“आओ, यहां बैठो ना। बहुत दिनों बाद तुम्हें देख रहा हूं।” मिस्टर सोनी ने एक कुर्सी उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।

“दरअसल इस वक्त आप ही कहां घर पर रहते हैं।” तृप्ति नें बैठते हुए कहा था।

“हां मैं क्लब चला जाता हूं ना। आज क्लब की रंगाई-पुताई का काम चल रहा है इसलिये घर पर हूं। वैसे बेटी, तुम्हें यहां कोई तकलीफ तो नहीं?” 

“आप भी कैसी बातें करते हैं। मैं यहां बहुत खुश हूं। आज मैडम नहीं दिख रही?” तृप्ति ने सामने टेबल पर रखी किताब को हाथों में लेते हुए कहा।

“वह शायद बाहर गयी है। बेटी, तुम उसकी बातों का बुरा मत मानना। दरअसल बहुत अनुशासनप्रिय और ईमानदार है वह। शायद इसी वजह से हमारे बेटे भी हमसे दूर रहना चाहते हैं। मेरे दोनों बेटे स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं। अपनी मां को वह समझ नहीं पाये।” मिस्टर सोनी ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा। दर्द उनके शब्दों को छू रहा था।

अचानक वे रुक गये। शायद उन्हें लगा तृप्ति बोर हो रही है।

“तुम कुछ लोगी.. चाय बगैरह?” 

“नहीं, ठीक है.. बातें करते हैं ना। भीतर बहुत उमस हो रही थी इसलिए बाहर आ गयी। अब आपसे बातें करते हुए अच्छा लग रहा है। आपके बेटे फोन तो करते होंगे ना?” 

“पिछले दो सप्ताह से तो नहीं किया है। मजे में ही होंगे।” जबरदस्ती की मुस्कुराहट अपने होठों पर लाते हुए मिस्टर सोनी ने जैसे अपने दर्द को छुपाना चाहा।

“क्या करते हैं वे?” तृप्ति की जिज्ञासा बढ़ रही थी।

“एक तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है अमेरिका में और दूसरा एमबीए करने के बाद मैनेजर है लंदन की एक फर्म में। बहुत मुश्किलों से हमने दोनों को पढ़ाया-लिखाया। मेरी तो एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क की साधारण सी नौकरी थी। अभावों का सामना हंसते-हंसते मधु, मतलब मेरी पत्नी ने भी किया, पर बच्चों को हमने अच्छे से अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश की है। मधु शुरू से ही अनुशासनप्रिय और सख्त किस्म की रही है। उसकी इच्छा के अनुसार ही रवि और निशांत की परवरिश हुई। मधु के अनुसार, ज्यादा दोस्तों से मिलने या घूमने-फिरने से बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ता है। रवि और निशांत को शुरू से ही दोस्तों की कंपनी से दूर रखा गया। सिनेमा, पार्टी, सैर-सपाटे वगैरह तक के नाम वे लोग ले नहीं सके। शायद ही कभी हम उन्हें घुमाने बाहर ले गए हो।

परिणाम भी प्राप्त हुए। रवि और निशांत अपने-अपने कॉलेजों के टॉपर्स रहे। पर ज्यों ही उन्हें हमारी महत्वाकांक्षा की उड़ान ने विदेश की ओर भेजा, वे आजाद हो गये। बंधनों से मुक्त दोनों फिर यहां कैसे लौटते। कुछ साल पहले रवि ने लंदन में स्थित एक भारतीय मूल की लड़की से शादी कर ली। शादी के बाद उसने हमें खबर दी और हमारा आशीर्वाद मांगा। निशांत दो साल से अमेरीका में है। हर बार बात होती है तो फोन पर कहता है कि छुट्टी मिलते ही आऊंगा पर…….” 

कहते-कहते मिस्टर सोनी चुप हो गए। तृप्ति को अपने आसपास की चुप्पी भारी लगने लगी। गमगीन, उदास और बोझिल। दो-दो बेटों के होते हुए माता-पिता के चारों ओर कैसी उदासी रहती है।

तृप्ति ने हल्की सी हवा की सिरहन से चौंक कर ऊपर देखा। कहीं दूर से, हल्के काले बादल आकाश में तैरते नजर आ रहे थे।

अंकल, आप लोग परेशान ना हो। बच्चों की भी तो अपनी जिंदगी होती है ना। हम उन पर कितनी बंदिशें लगा सकते हैं। अब उन्हें बचपन की तरह, सख्ती से अपने पास तो पकड़ कर नहीं रह सकते ना। समझौता तो करना ही पड़ता है ना।” तृप्ति ने वातावरण को सहज करने की कोशिश में कहा।

“तुम ठीक कहती हो बेटा। पर प्लीज… कभी मधु की बातों का बुरा मत मानना। उसके दिल में भी ममता है, पर वह उसे आसानी से व्यक्त नहीं कर सकती।” मिस्टर सोनी ने तृप्ति का हाथ थपथपाया। 

दूर से आये बादलों नें उस शाम अच्छी बारिश की थी। मौसम हल्का हो उठा था। अब बारिश रोज ही होने लगी। आसपास हरियाली झूलने लगी। तृप्ति की उपस्थिति से सोनी परिवार की जिंदगी में बहार आ गई थी। मिसेज सोनी की टोका-टाकी के बावजूद तृप्ति इस घर को अपनाने लगी थी। कभी-कभार तृप्ति की मां अपने बेटे के साथ आ भी जाती थी। तृप्ति अक्सर विद्यालय से लौटते वक्त मिसेज सोनी की खरीदारी भी कर लाती थी। इससे मिसेज सोनी का भी काम हल्का हो जाता था।

एक दिन तृप्ति विद्यालय गई तो बूंदा-बांदी हो रही थी पर दिनभर में बारिश बढ़ती गयी थी। शाम ढलने तक शहर का बुरा हाल हो गया था। फिर मिसेज शर्मा के साथ तृप्ति की एक मीटिंग थी। बारिश के तेवर को देखकर मिसेज शर्मा ने तृप्ति को अपने घर रुकने का आग्रह किया। बाहर बसें भी कम चल रही थी और अचानक बिजली भी गुम हो गयी। तृप्ति परेशान हो उठी थी। कुछ सोचकर वह विद्यालय के कैंपस के क्वार्टर में रहने वाली मिसेज शर्मा के साथ चल पड़ी थी।

रात को उसने सोचा कि मिसेज सोनी को सूचना दे देनी चाहिए। फोन लगाया तो माथे पर गाज गिरी। फोन भी नेटवर्क एरिया से बाहर था।

“परेशान मत हो तृप्ति, मैं मिसेज सोनी को समझा दूंगी। अब ऐसी बारिश व अंधेरे में तुम कैसे बाहर निकल सकती हो।” मिसेज शर्मा ने तृप्ति को आश्वासन देने की कोशिश की।

“आप उन्हें जानती नहीं है। बेहद सख्त महिला है। जाने क्या-क्या समझने लगेगी।” तृप्ति ने खिड़की पर बूंदों की बौछारों की ओर चिंतित नजरों से देखते हुए कहा।

किसी तरह रात गुजर गई। दूसरे दिन शनिवार था। विद्यालय की छुट्टी थी। तृप्ति, मिसेज शर्मा से विदा लेकर घर पहुंची तो सन्न रह गई। उसका सामान कमरे के बाहर पटका हुआ था। मिसेज सोनी को देखते हुए तृप्ति के हाथ-पांव कांपने लगे।

“मैडम! सॉरी.. दरअसल कल बारिश की वजह से मिसेज शर्मा के घर रुकना पड़ा था।” तृप्ति अभी किसी भी तरह इस घर को हाथ से खोने से डर रही थी, इसलिए गिड़गिड़ा उठी थी।

“ठीक है! पर तुम खबर तो कर सकती थी। पता है, रात हमने कैसे गुजारी। कितने परेशान, कितने टेंशन में थे हम। एक फोन से खबर तो कर सकती थी। देखो, हमने अपने घर  किरायेदार रखी है कोई ‘परेशानी’ नहीं!” मिसेज सोनी के आंखों तले की कालिमा बता रही थी कि पिछली रात उन्होंने जागकर बितायी थी। 

“मैडम, फोन भी नेटवर्क एरिया से बाहर हो गया था। बिजली गुल हो गई थी। मिसेज शर्मा ने…”

तृप्ति रुआंसी हो उठी। उसने देखा, मिस्टर सोनी व चंदा भी धीरे से आकर पीछे खड़े हो गये थे। पर उनकी हिम्मत नहीं थी कि वे लोग मिसेज सोनी को रोकते।

“ठीक है तुम लड़की हो इसलिए मैं इस बार माफ करती हूं। पर आइंदा से ख्याल रखना। मैं कभी अपने बेटों को बिना खबर किये बाहर रहने की अनुमति नहीं दी तो…” 

पहली बार मिसेज सोनी के होठों से अपने बेटों के बारे में कुछ निकला था। जाने क्या हुआ कि अचानक तृप्ति के मुख से निकल पड़ा,” पर आज वे दोनों ही बाहर रह रहे हैं।

एक बार मिसेज सोनी ने तृप्ति की ओर देखा और धीरे से कुछ सोचती हुई अपने कमरे की ओर चली गयी।

तनाव गहरा गया था। तृप्ति ने बाद में मिसेज सोनी से माफी भी मांग ली थी। लेकिन मिसेज सोनी सामान्य नहीं हो सकीं। तृप्ति के प्रति उसके मन में एक दरार बनने लगी। मिस्टर सोनी ने भी अपनी पत्नी को एकांत में समझाया। तृप्ति केवल उनकी एक किरायेदार है। फिर वह बाहर काम पर जाती है इसलिए कभी-कभार देर भी हो सकती है। इस पर उन लोगों को बेतहाशा घबराना ठीक नहीं। ना ही वे तृप्ति पर अपनी तरफ से कोई अंकुश ही लगा सकते थे। फिर वह एक नेक किरायेदार की तरह अपना किराया समय पर देती है, मिसेज सोनी की शर्तों पर चल भी रही है।

कुछ दिनों बाद तृप्ति को अपने विद्यालय की बच्चियों को सालाना जलसे की तैयारी करानी थी। मिसेज शर्मा ने तृप्ति के ऊपर कुछ बच्चों को लेकर एक नृत्य-नाटिका की तैयारी करवाने का भार सौंपा। तृप्ति विद्यालय की छुट्टी के बाद तैयारी करवाने में लगी थी पर शनिवार और रविवार को भी उसे इस काम को करना था। एक बार तो तृप्ति ने सोचा कि मिसेज सोनी के फ्लैट की छत पर तैयारी करवायी जा सकती है, पर दूसरे ही पल मिसेज सोनी की बेरुखी याद कर वह मन ही मन घबरा उठी। फिर भी जाने क्या सोचकर एक दिन उसने मिस्टर सोनी से बात की तो उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दे दी। साथ ही वह अपने फ्लैट के दूसरे लोगों की अनुमति भी ले आए। पर मसेज सोनी को अभी बताना बाकी था।

शनिवार की सुबह, मन मारकर तृप्ति विद्यालय जाने को तैयार हो रही थी कि मिसेज सोनी ने टोका, “तृप्ति!” 

“जी, मैडम! एक आज्ञाकारी बच्चें की तरह तृप्ति मिसेज सोनी की आवाज पर ठहर गयी। 

“तुम्हें आज भी विद्यालय जाना है?” 

” जी! वह स्कूल में रिहर्सल करवाना है ना।” 

“पर तुम्हारा टिफिन तो तैयार नहीं है। मुझे कुछ पता नहीं था। मैं तो यही सोच रही थी कि तुम्हारी छुट्टी ही होगी। चंदा भी बाजार गयी हुई है। बस नाश्ता ही तैयार है।” 

“जी मैं बाहर खा लूंगी।” 

” नहीं! तुम खाने के रुपये दे रही हो तो बाहर क्यों खाओगी! अब से तुम एक काम करना, शनिवार-रविवार जब भी बाहर जाओ, मुझे बता देना और चाहो तो तुम बच्चों को यही बुलाकर रिहर्सल करवा सकती हो। लंच टाइम तक रिहर्सल खत्म कर या रुकवा कर खाना खा लेना।”

“क्या?” एक आनंदमिश्रित आश्चर्य की रेखा तृप्ति के चेहरे पर बिखर गई थी। वह कुछ कहती कि इससे पहले ही मिसेज सोनी दूसरी और मुड़ गयी थी। खुशी से नाचते मन से तृप्ति ने अचानक ही अपने हाथों को हवा में लहराया था कि दूसरे ही क्षण मिसेज सोनी उसकी और घूमी। तृप्ति के चेहरे के भाव कुछ शर्माकर सिमट गए। 

“अ, हां! याद रखना, मेरे घर की व्यवस्था पर कोई असर न दिखे। मेरे पौधों को कोई हाथ भी ना लगाये।” 

“जी मैं कोशिश करूंगी।” तृप्ति ने मिसेज सोनी के बालकनी व बरामदे में सजे पौधों के गमलों पर एक नजर डालते हुए कहा। 

अब शनिवार और रविवार को बच्चे तृप्ति के घर ही आने लगे। बच्चों की मुस्कानों, खिलखिलाहटों व शरारतों से कुछ घंटो तक मिसेज सोनी का घर आबाद रहता।

बच्चों की हलचल से सब चौकन्नें हो उठते। तब ये कहना मुश्किल हो जाता है कि गमले में लगे फूल, बच्चों को देख मुस्कुरा रहे हैं या बच्चे फूल सी मुस्कान बांट रहे हैं। इन सभी के बीच अपनी साड़ी के पल्लू को कमर में बांधे तृप्ति चौकसी से उन्हें नृत्य व नाटक के विभिन्न अंश समझाती। चंदा भी कभी-कभी अपना काम भूल कर बच्चों को देखती रहती मिस्टर सोनी तो अपनी कुर्सी एक किनारे लगाकर आराम से बच्चों का तमाशा देखने लगते। तृप्ति की नजर इन सब के बीच मिसेज सोनी को ढूंढ़ती। 

“क्या ईश्वर ने उन्हें दिल नाम की कोमल वस्तु दी है? अगर हां, तो वे दिखती क्यों नहीं है? हमेशा कठोरता का दामन थामें आखिर वह क्या जताना चाहती है? जहां पड़ोसी तक बच्चों के संग मुस्कुराते नजर आ रहे हैं वही मिसेज सोनी….।” तृप्ति का मन बच्चों के साथ लगा रहता, पर यह भी चाहता रहता कि काश मिसेज सोनी का दिल भी तो कभी पिघले। कभी तो उनका प्यार दिखे! 

महीने भर बाद बच्चों की हलचल कम हो खत्म हो गयी। शनिवार की एक सुबह तृप्ति देर से सोकर उठी तो मिसेज सोनी को बच्चों के लिए दरवाजा खोले इंतजार करते देखा। 

अलसाये चेहरे से वह वॉश बेसिन की ओर बढ़ने लगी तो मिसेज सोनी ने आवाज दी, “तृप्ति, आज क्या बच्चे नहीं आएंगे?” 

“मैडम! नहीं! उनकी रिहर्सल तो खत्म हो गयी। तृप्ति के चेहरे पर हल्की मुस्कान प्रकट हो रही थी। जैसे उसने मिसेज सोनी के प्रेम को पकड़ लिया हो और वह तृप्ति से कुछ छुपा रही हो। 

“ओह! तो मैं गमलों को ठीक कर दूं।” मिसेज सोनी अपने पौधों को ठीक करने लगी। तृप्ति को कुछ समझ में नहीं आया। कई क्षणों तक वह मैसेज सोनी की ओर देखती रही जैसे उनके अंदर के सच को पढ़ने की कोशिश कर रही हो। 

एक दिन तृप्ति विद्यालय से लौटी तो मिसेज सोनी बरामदे में चहलकदमी कर रही थी। तने हुये चेहरे को ऊपर उठाकर उन्होंने तृप्ति को कुछ कड़ी आवाज में कहा, “तुम आज भी बाथरुम का नल बंद करना भूल गई थी। सारा कमरा पानी से भरा हुआ था। चंदा के साथ मुझे भी पानी साफ करना पड़ा। अगर तुम ऐसे लापरवाह बनी रही तो कैसे काम चलेगा?” 

तृप्ति शायद विद्यालय से ही परेशान लौटी थी। उसने झुंझलाते हुए कहा, “मैडम, मैं आपको बिजली-पानी सभी का किराया देती तो हूं। फिर भी अगर आपको मुझसे परेशानी होती हो तो….! वैसे मेरी अनुपस्थिति में आप कैसे मेरे रूम में चली आती हैं?”

तृप्ति के कथन से मिसेज सोनी का चेहरा उतर गया। शायद वह तृप्ति के प्रति अपनत्व के कारण ही उसकी गैर मौजूदगी में भी उसके कमरे को खोलकर प्रवेश करती थीं। पर वह ऐसा कह नहीं सकीं। तृप्ति जो सुनना चाहती थी वह मिसेज सोनी की जुबान पर नहीं आ सका। 

तृप्ति यह भी जानती थी कि मिसेज सोनी उसे अपने घर से निकाल नहीं सकतीं। अपने दोनो पुत्रों के अलग होने के बाद पहली बार मिसेज सोनी ने अपने घर पेइंग गेस्ट या किरायेदार रखा। अपने घर के सूनेपन को उसने तृप्ति के द्वारा भरना चाहा। पर वह अपने अनुशासित रवैये को भी बदल नहीं सकती थीं। अपनी-अपनी हदों व सीमाओं को जैसे दोनों ने समझ रखा था। 

अचानक एक दिन विद्यालय में तृप्ति को किसी पड़ोसी ने फोन पर बताया मिसेज सोनी का एक्सीडेंट हो गया है और वह नर्सिंग होम में भेज दी गयी है। तृप्ति तो सुनकर ही हक्की-बक्की रह गयी। सुबह ही तो गेट से बाहर निकलते वक्त उसने मिसेज सोनी को अपनी खिड़की से ताकते देखा था पर जैसे ही तृप्ति की नजर उन पर पड़ी थी वह नज़रे चुराने लगी थी। 

नर्सिंग होम पहुंचने पर चंदा ने बताया कि करीब बारह बजे दोपहर को फ्लैट में मिसेज सोनी अकेली थीं तब हादसा हुआ था। दो लड़के खुद को मीटर रीडिंग करने वाला बताकर फ्लैट में घुस गए थे। फिर मिसेज सोनी से चाभी लेकर उन दोनों ने हर कमरे से महंगे सामान व नकदी उठाकर सूटकेसों में भरे। 

जब तृप्ति के बंद कमरे की चाभी उन दोनों ने मिसेज सोनी से मांगी तो उन्होंने देने से मना कर दिया था। बार-बार मांगने पर भी जब मिसेज सोनी ने चाभी नहीं दी तो एक ने चाकू से उनके गले पर वार किया। तभी बाजार से लौटी चंदा ने फ्लैट का हाल देखकर शोर मचाना शुरू कर दिया था। दोनों बदमाश काफी सामान लेकर भाग गये और चंदा ने पड़ोसियों की सहायता से मिसेज सोनी को नर्सिंग होम में भर्ती करवाया। 

तृप्ति की आंखों से आंसूओं की धार बरबस ही फिसलने लगी। उसने खुद को कोसा, “अगर उस दिन मैं मिसेज सोनी से अपनी अनुपस्थिति में कमरे को खोलने की बात ना करती तो यह नौबत तो ना आती! मैं ही खुद पर काबू करना जानती।” 

किसी तरह उसने अपने को समेट कर मिस्टर सोनी के साथ उनके दोनों बेटों को फोन किया। मां की खबर सुनकर रवि ने कहा, “अभी तो मुझे तुरंत छुट्टी नहीं मिल सकती.. हां मैं एक हजार डॉलर भेज रहा हूं, इलाज में खर्च करना। जरूरत पड़े तो और भेज दूंगा। वैसे मैं मां की खबर लेता रहूंगा। 

मिस्टर सोनी समझ गए थे कि मां की जिम्मेदारी उठाने के बदले डॉलरों को कमाना व खर्च करना ही उनके हाथ में है। निशांत को फोन किया गया तो पता चला कि ऑफिस के काम से वह कहीं और गया हुआ था। उसके कंप्यूटर में मैसेज छोड़ने के अलावा कोई उपाय नहीं था तृप्ति के पास। 

मिसेज सोनी आईसीयू में थीं। बेहोश और डॉक्टरी यंत्रों और उपकरणों से लदी हुई। तृप्ति को लगा कि अब उनके अंदर की ममता, प्रेम व विश्वास जैसे उनके बंद आंखों वाले चेहरे पर आ गयी हो। 

रात गुजरने को थी कि तृप्ति के लिए दूसरी बुरी खबर आई। तृप्ति के भैया ने फोन पर बताया कि अचानक हार्ट अटैक से मां गुजर गयी। तृप्ति के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गयी। सब कुछ अंधेरे में खो गया। वह खुद बेहोश हो गयी। होश आने पर उसने देखा कि चंदा उसके घर जाने की तैयारी में सूटकेस तैयार कर रही थी। 

“मैं अभी घर नहीं जाऊंगी!” तृप्ति के धीमे पर दृढ़ शब्दों ने सबको चौंका दिया था। 

मिसेज सोनी के होश आने पर ही मैं घर जाऊंगी। उनसे मिले बिना मैं…” तृप्ति फफक उठी थी। 

“तुम परेशान मत हो। डॉक्टरों ने बताया है कि वह अब खतरे से बाहर है। कुछ देर में होश भी आ ही जायेगा। फिर उधर तुम्हारे घर वाले इंतजार कर रहे होंगे। बेटा, मैंने सब ठीक कर दिया है। हमारे क्लब की गाड़ी से तुम जा सकती हो।” मिस्टर सोनी ने तृप्ति के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। 

“ना, नहीं! अंकल जाने वाले तो चले ही गये। मां तो मर ही चुकी है। मेरे आज जाने से वह बच तो नहीं जायेंगी ना! जो जिंदा है, उसकी देखभाल करना जरूरी है। फिर रवि और निशांत भी नहीं है यहां।” तृप्ति ने कहा। सभी ने कितना समझाया पर व्यर्थ गया। 

पूरे अड़तालीस घंटे बाद मिसेज सोनी ने आंखें खोली। सबसे पहले तृप्ति को उन्होंने ढूंढ़ा। 

“मैंने तुम्हारा विश्वास नहीं तोड़ा ना! तुम्हारा कमरा, तुम्हारी गैर मौजूदगी में नहीं खुला!” मिसेज सोनी ने फुसफुसाते हुए कहा। 

“ब…स…! अब मुझे माफ कर दीजिए!”

किसी तरह अपने रूंधे गले से तृप्ति ने कहा और मिसेज सोनी की बाहों में लिपट गयी। 

मिस्टर सोनी ने दरवाजे की ओट से उन दोनों को देखा। 

“क्या ये महज किरायेदार और मकान मालकिन के ही रिश्ते हैं!” सोचकर उन्होंने अपनी भीगी पलकों को पोंछा। उन्हें अपने अपने-बेगाने की पहचान हो चुकी थी।

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रचनाकार

Author

  • पूजा गुप्ता

    सम्प्रति : स्वतंत्र लेखिका कृतियां : कुल पुस्तकें "मेरे मन के भाव," "आइना समाज का " गद्य और पद्य विधा में प्रकाशित। २००० से अधिक लेख और हिंदी भाषा में कहानियां। देश विदेश की पत्र-पत्रिकाओं और विभिन्न राज्यों के समाचार पत्रों में। संपर्क : भगवानदास की गली, आदर्श स्कूल के सामने, गणेश गंज, मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश), पिन कोड - 231001

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