तुम अपने आप को पहचानो,सही गलत में अन्तर जानो ।
तुम नहीं किसी से निम्न हो,खुद को न कभी दुर्बल मानो ।।
मन में यदि संकल्प करो तो,तुम सागर माप सकते हो,
तुम में भी वो पौरुष है,बिन लड़े न हार सकते हो ।।
मन संतुष्ट हो गया अगर,फिर तो कोई चाह नही होगी,
कैसे सफर कटेगा बोलो,जब सम्मुख कोई राह नही होगी ।।
प्रकृति कभी न थकती है,दिनकर भी सदा निकलता है,
जो जितना श्रम में तपता है,वो उतना प्रखर निखरता है ।।
तू हार कर मत बैठ मुसाफिर,ये तेरा नही ठिकाना है,
मंजिल तेरी दूर बहुत है,तुम्हें बाधाओं को हराना है, ।।
सरिता पर्वत से निकलती है,निरंतर चलती रहती है,
सागर से मिलकर उसको,परम संतुष्टि मिलती है ।।
जो संघर्ष नही कर पाते है,वो तो जीते जी मर जाते है,
उनकी न कोई ख्याति होती है,वो लोग गुमनाम हो जाते है।।
सत्य को स्वीकार करो,असत्य का सदा प्रतिकार करो,
तेरा हर संकल्प पूर्ण होगा,यदि खुद पर तुम विश्वास करो ।।