अजन्मी बेटियों के खून से रंगा ये समाज,
मुझे हत्यारा दिखाई देता है ये समाज।
शहरों से लेकर गांव तक, नगरों से लेकर कस्बों तक ,
मुझे हत्यारा दिखाई देता है ये समाज।
क्या ये वो समाज है ? जिसमें जन्मी थी सीता,
क्या ये वो समाज है ? जिसमें गूंजी थी लक्ष्मी-बाई की यश गाथा।
जनगणना के यें आंकड़े सहमा देते हैं मुझे,
अपनी भयावहता का प्रतिबिंब दिखा देते हैं मुझे।
उन बच्चियों के चित्कार सुनाई देती है मुझे,
उनके रक्त से सना ये समाज दिखाई देता है मुझे।
जिसे समझा जाता था प्राणरक्षक इस धरा पर,
लेकिन आज हाथ में लिए खड़ा छूरी वही इस धरा पर।
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