माँ मैथिली गुरु, ख़गेश्वर नाथ,
वाली जुबानी है,
कोरे, काग़ज़, पे लिख लो,
शाँति यही बस आनी है,
विश्वविद्यालय बिहार, नालंदा,
खुली कहानी है।
धीश देखें, जग धीश देखें,
पीने न पीने देने वाले देखे,
पूत देखें, कपूत देखे,
सब देखने वाले, अँधे,
और सब जानने वाले गदहे।
अब पुरइन के, पत्ता, से,
केले के पत्ते तक,
सबको, भोज खिलानी है,
मखाना, कच्चा वाला,
कमलिनी से, चुरानी है,
मुझे, अपने, सभी भाइयो को,
बतानी है, मुकुन्द की मनोरमे,
में बसी, माँ, बूढ़ी गंडक का पानी है।
सब भाई, का साथ चाहिए,
ज्यादे नहीं, बस चार चाहिए,
मैथिली, बज्रिका, भोजपुरी, अंगिका,
मगहि, गान सुननी है।
हम, जो है, वैसी ही, दिखानी है,
अंग्रेजी मेम, की, गया जी में,
बिन पानी, प्यास बुझानी है,
मैं, लिखता हूँ, तु गॉ व,
ई धरती, के, सीता मैया,
आ, रामजी की कहानी है,
ओझा गोनू, की मुजबानी है।
बस इतना ही है, सपना,
जैसे भी है, सब समझे अपना,
दिल्ली में, कोई गाली न दे,
पंजाब में, भैया-पै या न कहे,
गर कहे तो, मुझको कहे,
मेरी माँ को गाली न दे,
भारत के है, हम भी रहने वाले,
बिहारी है, तो है, पर बिहारी कह के, गाली न दे।