बतियाती हैंअक्सर तुम्हारी यादें

बतियाती हैं अक्सर तुम्हारी यादें,
कहती हैं, फिर इश्क़ करना है मुझे ll

सोचता हूँ डरता हूँ फिर तन्हाईयों से
कैसे अब खुद से लड़ना है मुझे ll

तुम और हम अब मिल नहीं सकते,
ये सच्चा ख़्वाब समझना है मुझे l

यूँ तो लहरें उठती हैं, आह के साथ,
तेरी चौखट से खाली लौटना है मुझे ll

हर दुआ लौट आई, जिनमें माँगा था तुम्हें,
हो भरोसा अब खुदा पर, सीखना है मुझे l

बेसर सब हो गई, जोड़ी सलामत की दुआ ,
ख़ाक में हर शख्स की दुआ को मिलाना है मुझे

फिर भी यादों में सही ही, मेरे सिर्फ मेरे हो तुम
यादों में तेरी अब ,सिर्फ होना है मुझे ll

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रचनाकार

Author

  • आलोक सिंह "गुमशुदा"

    शिक्षा- M.Tech. (गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कुरुक्षेत्र, हरियाणा l संप्रति-आकाशवाणी रायबरेली (उ.प्र.) में अभियांत्रिकी सहायक के पद पर कार्यरत l साहित्यिक गतिविधियाँ- कई कवितायें व कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं कैसे मशाल , रेलनामा , काव्य दर्पण , साहित्यिक अर्पण ,फुलवारी ,नारी प्रकाशन , अर्णव प्रकाशन इत्यादि में प्रकाशित l कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एकल और साझा काव्यपाठ l आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी लाइव काव्यपाठ l सम्मान- नराकास शिमला द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व सम्मानित l अर्णव प्रकाशन से "काव्य श्री अर्णव सम्मान" से सम्मानित l विशेष- "साहित्यिक हस्ताक्षर" चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल , जिसमें स्वरचित कविताएँ, और विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं पर आधारित "कलम के सिपाही" जैसे कार्यक्रम और साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है l पत्राचार का पता- आलोक सिंह C- 20 दूरदर्शन कॉलोनी विराजखण्ड लखनऊ, उत्तर प्रदेश Copyright@आलोक सिंह "गुमशुदा"/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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