दुलहिन अस धरती सजी
भवा सीत कै अंत
लयि पुरुवाई आयि गै
बगियम् नवा बसंत
बगियम् नवा बसंत
लिखैं प्रिये प्रियेतम का पाती
अउ महुआ के महकावन से
अमराई माती गुडहल गेंदवा अउर चमेली
महक उडेलैं
प्रेम दिनन मा प्यारे
बइठ बिछोहा झेलैं
बसी शारदा मैय्या मानौ
फिर से करिया कंठ
अउ लयि पुरुवाई आयि गै
बगियम् नवा बसंत ,
कली कली चटकीं अस
मानौ
अब तब फुलिहैं
के जानै कब झुलनी
गोरिक् कान मा झुलिहैं
लाल पियर हरियर कुलिहौं
अस रंग रंगीला
बहुतै रहा उज्जड
परा भंवरा सरमीला
नदी किनारे बिचरत ,अवधी
जोडै जोड़ा हंस
लयि पुरुवाई आयि गै
बगियम् नवा बसंत ,,
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