बटोही जैसे जुगाता है गठरी
चिड़िया अंडा जुगाती है
जुगाये हमने बीज
बोया-लगाया खेतों में
कि लहलहायेगी फसल
बालियाँ खनकेंगी
खिलखिला उठेगा खलिहान
फ़कत बीज नहीं , बोये थे सपने हमने
बिटिया के ब्याह के
बच्चों की पढ़ाई के
बीमार के इलाज
और कर्ज से रिहाई के
बोये थे सपने !
हमें बालियाँ काटनी थी
कैसे काटें अब बाढ़ ?
बाढ़ – जो लील गयी फसल
काट ले गयी घर-बथान
खा गयी हमरे ख़्वाब
हमें अनाज बटोरना था
कैसे बटोरे बाढ़ !!
हम ताक रहे हैं अब भी
तुम्हें ही
काले आसमान
चातकी के समर्पण-भाव से नहीं
चटखे मन , प्रश्नाकुल ऑंखों से
धरती ने तुमको
देवत्व से सँवारा है
आस्था की अंजुरी उठा
गाढ़ में गुहारा है
हो इतने ऊँचे तुम
इतना विस्तार
कैसी यह डाह फिर
खुभ-खुभ जाता है क्यों
तेरी ऑंखों में
वसुन्धरा का शृंगार ?
देखे जाने की संख्या : 417