भाव में डूब कहता, दिल के द्वार आ जाओ
खुले प्रतीक्षा में पट ,स्वास्तिक बना जाओ
तुम्हारी याद में, डूबी छलकती हैं आंखें
भरे हुए है जो जल ,आचमन करा जाओ
हाथ जोड़े खड़े हैं, हम तो तेरे स्वागत में
तिलक लगाके माथ ,दिल अच्छत कर जाओ
प्रेम के धागे को ,दिल से कभी अलग न करो
सदा ही दिल से लिपट ,यज्ञोपवीत बन जाओ
दिल के मंदिर में ,तेरी आरती उतारूगा
हृदय में प्रेम की ,अखंड ज्योति बन जाओ
बिना महके हुए ,मधुबन से खिले बैठे हैं
अपनी सांसो से ,कली में सुगंध भर जाओ
प्रेम के यज्ञ में ,सब कुछ पवित्र हो जाए
उठे धुए में महक ,ऐसी धूप बन जाओ
उमडती वेदना, मिलने को ,दिल के कोने में
करुण पुकार सुन के दिल की ,आज आ जाओ
बन के साथी तुम्हारा ,मैं चलूंगा जीवन भर
सुखद एहसास दे, ओ राह फूल बन जाओ
सदा महकाओगे अब ,दिल का बगीचा
मेरे शपथ की अंजुरी मे , लेके जल को कह जाओ
पडे चरण तो ,अपने को धन्य समझूंगा
कवि का प्रथम चरण, आज आके बन जाओ
तुम्हारा भाव ही ,काफी है, डूबने के लिए
बनके मेरी तू ,अपना भाव मुझे दे जाओ
पियूं मैं कब तलक, विष का प्याला
भोले बनकर मोहिनी रूप धर ,मुझको अमृत पिला जाओ