परेशान आदमी
शायद जानता ही नहीं
जहाँ राह खत्म होती है
वहीं शुरू होती है
नई मार्ग रेखाएं
बस दो कदम और चलता
तो तसव्वर से ज्यादा मिलने वाला था
असबाब हो या आध्यात्म
ये दो कदम और ही इम्तहान हैं
जो चला हिम्मत से
उसके सजदे में सारा जहान था
आखरी के दो कदम
गिनतियाँ तबाह हो जाती है
दो कदम और न तय कर पाने से
मंज़िल से पहले
कई अधपके दरवेश लौट आते है
यह कहते हुए कि
खुदा फखत इक जिक्र है
टूट जाती है डोरियां
जन्मों के बन्धन की
बस दो कदम और कितनों का धीरज है
किनारें लगने से पहले ही
टूट जाती हैं सांसें
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