तुम्हारी याद!

तुम्हारी याद

जैसे घने जंगल में भटके हुए

पिपासाकुल बटोही के कानों में

बज उठे किसी निर्झर की आहट का

जलतरंग !

तुम्हारी याद

जैसे पतझड़ के अवसाद को

अतीत करती हुई

कोयल की पहली कूऽऽऽ !

तुम्हारी याद

जैसे तंग अजनबी गली से गुजरते हुए

आ उलझे बाहों से कोई

चम्पई पतंग !

तुम्हारी याद

जैसे आषाढ़ की पहली फुहार में

घुलती मिट्टी की खुशबू !

तुम्हारी याद

जैसे थकान का नदी-स्नान !

तुम्हारी याद

जैसे अलसित मन की प्रभाती !

वीतबन्ध यह स्मृति तेरी

मेरा पाथेय , मेरी थाती !!

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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