जिंदगी ख्वाब है इस ख्वाब में क्यों जीते हो
जिंदगी प्याला गरल का इसे क्यों पीते हो
जितना जीवन में मिला उसको ही पूरा समझो
और पा जाऊं मैं इस चाह में क्यों रहते हो
जलाओ दीप अपने दिल में सदा भावों का
भरे जीवन को खाली करके ही क्यों बैठे हो
प्रकृति विखेर रही है हवा सुगंधित जो
खिलती वादी का क्यों रसपान ना तुम करते हो
भाव में तैरना ही जिंदगी कहलाती है
भाव को छोड़कर के अर्थ मे क्यों बहते हो
सदा ही जीर्ण होता जाता है जीवन सबका
माया नश्वर शरीर क्यों गुमान करते हो
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