ऐसा तो कुछ नहीं कि मर ही जाएं ख़ुशी से ।
औ ग़म भी गुज़रते नहीं हैं अपनी गली से ।
उस चाँद सी हँसी को ग्रहण जब से लगा है ।
हम भी नहीं हँसे हैं मेरे यार तभी से ।
पागल नहीं तो क्या हैं चलो तुम ही बता दो ।
पानी की बात करते हैं हम ख़ुश्क नदी से ।
क्यों सख़्त हो गये हैं तेरे बोल अचानक ।
क्यों होंठ लग रहे हैं तेरे नागफनी से ।
आंखों में एक चम्पई रेखा सी खिंची है ।
देखा है हमने जब भी तुम्हे बालकनी से ।
देखें कि नतीजे में हमे आज क्या मिले ।
आंखें तो चार कर रखी हैं सब्ज़ परी से ।
यूँ तो नहीं झुका कभी “कमलेश” कहीं पर ।
हारा है मगर रोज़ ही इस दिल की लगी से ।
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