पहन कर चोंगा/ सफेद रोंयेदार
सूरज के खिलाफ / निकल पड़ा है अंधकार!
कोहरे में गुम हो गयी हैं
गलियाँ, राहें
बन्द है बच्चों की धमाचौकड़ी
रद्द कर दी हैं चिड़ियों ने उड़ानें
बढ़ गयी हैं दुर्घटनाएँ
कोहरे में / कौन, किसे पहचाने !
झेलता कोहरे का कहर
काँप रहा है शहर
सूरज ठंडा पड़ गया है जैसे
झाँकता है जब कभी
शर्म से चाँद होकर !
बन्द कर दरीचे- दरवाजे/घुस गये हैं
कम्बलों, लिहाफों में लोग
वातानुकूलित भवनों के / मुख्य द्वार पर
लटका दी गयी है
‘ठंड का प्रवेश -निषेध’ की तख्ती
क्या करें वे / जो बे-घर हैं
नहीं है जिनके पास /कम्बल- लिहाफ
कोहरे को कोहनी मार
काम पर न जायें
तो शाम को क्या पकायें?
लड़ रहे हैं वे /बहुरूपिये अँधेरे से
निकल पड़े हैं रास्तों पर
होठों में सुलगती बीड़ी दबाये
किनाराकशी को विवश कोहरा
छँटता जाता है
दाँयें- बायें ।
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