वो पढ़ी, अथक् प्रयास किये,
फिर वो आत्मानिर्भर बनी,
अपने पैरों पर खड़ी हुई।
उसने अपना और अपने माँ पापा का,
मान बढ़ाया, सम्मान किया,
ज़िम्मेदारी निभाई।
कहाँ वो चुक जाती है,
क्या स्त्री होना अपराध है??
अक्सर कुछ लोग बहुत कुछ अपशब्दों मे ताना कस्ते।
ऊँचे पद पर आसीन हो,
या कहीं काम कर अपना गुजारा करने वाली।
वो लोगों के फब्तियान,
उनके खुद के बुरे कर्मो में लिप्त होने के प्रतिक होते,
या पुराने सोच की।
काश के लोगों के सोच, समझ और कर्मो में इंसानियत होती,
हवसी प्रवृति ना होती, खुद पर सैयम होता।
स्त्री जाति के प्रति सम्मान होता,
तो आज देश में बलात्कार ना होते।
अगर देश में न्याय व्यवस्ता सुदृढ़ होती,
तो किसीकी बहन, किसीकी बेटी,
किसीकी माँ, किसीकी पत्नी,
किसी को भी इस भीषण अग्नि से गुजरना ना पड़ता,
ना ऐसी तकलीफदाई मृत्यु को वरण करना होता।
स्त्री को भी जिने का अधिकार है,
गगन को चूमने का अधिकार है, स्वतंत्र होकर।।