रेगिस्तान की भूमि पर सोच रही थीं मैं
दूर दूर तक कोई रहने वाला नही था वहाँ
पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?
क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर
हर रोज शायद बदल जाते है लोग रेत के टीले पर
मेरी तरह ही बैठ कर चल,छोड़ जाते हैं पदचाप
फिर वहीं शाम सुहानी उसके बाद रात वीरानी
आखिर क्यों रेगिस्तान के टीले की यह कहानी
पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?
क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर
जाता हुआ सूरज बिखेरता हैं स्वर्णिम छवि
मनमोहिनी सी छटा दर्शक को मोहित करती हैं
पुनःआगमन को डूब जाता लालिमा साथ लेकर
सुबह सुहानी देने फिर से आकर्षित करता है
पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?
क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर
लौट कर आने को रंगीन शाम बिताने को
चलती रही कदम दर कदम सोचती हुई कि
क्यों रेत के मानिंद हैं हमारी भी कहानी
कभी चमकती सी कहानी कभी बुझती सी रवानी
पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?
क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर
कब जीवन संध्या हो जीवात्मा चल दे लालिमा ले
कभी उदास शामें कभी कहकहों की सरगम
पदचाप के चिह्न सी छोड़ती जिंदगी
बस रेत के ही मानिंद नजर आई