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गद्य–रचनाएँ

पर्यावरण और नेपाली का काव्य

                           गोपाल सिंह ‘नेपाली’ उत्तर छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं | वे प्रेम,प्रकृति और राष्ट्रीयता की गीतिकाव्यधारा के विशिष्ट हस्ताक्षर हैं | इन्होंने आलोचकीय

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वैदिक साहित्य

‘वेद’ शब्द की उत्पत्ति ‘विद्’ शब्द से है, जिसका अर्थ – ‘ज्ञान की पराकाष्ठा’ है| वेदों तथा उपनिषदों को ‘श्रुति’ कहा गया है, जिसका अर्थ

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फन

हवा के शोर में संगीत सुनना छोड़ दूँ क्या ? जख्म है दिल में, तो जीना छोड़ दूँ क्या ? बेवफ़ाई तेरा फन , जो

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तेरी गली

किताब में फूल की सूखी पंखुड़ी मिली है। रास्ता मिलता रहा पर मंज़िले ,ना मिली है। तुम्हारे दरों दीवार को पहचानता हूं, तेरे चेहरे की

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माँ

शोणित था माँ का दूध नहीं था तुम्हें गर्भ में जो थी पिलाती लाने को दुनिया में तुमको सहा था माँ ने दर्द अपरिमित आये

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खो गए हैं

खो गए हैं स्वार्थान्धकार में मानव की मानवता,पुरुषों का पुरुषार्थ औरत की पवित्रता,पापी का पश्चाताप प्रेम भाई के प्रति भाई का, पिता-प्रेम मानव का मानव-मात्र

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निर्झर

देखो उस नदी को,निर्झर को नदी की नाद कल-कल, छल-छल निर्झर की झर-झर, झहर-झहर यह हास नहीं नदी-निर्झर की जीवन की भी यह शाश्वत है

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जीवन की ओर

धारा चल जीवन की ओर जीवन की किसी मरुभूमि को कर सिंचित,चल जग की ओर धरा के उर्वर कितने कोने, मरू,नागफनी उगे परे हुए तू

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