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देश के रहनुमाओं से मेरे इन सवालों के ज़बाब चाहिए

ये नफऱत,ये दहशत ये दिलों की दूरीकब मिटेगी ?? ये शिक़वे, शिक़ायत व बदले की आगकब बुझेगी ?? ये लालच,चोरी व दौलत की भूखकब मरेगी

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गज़ल-बेपर हुए

पंख रहते हुए भी बेपर हुएपरिन्दे जो क़फ़स के अन्दर हुए ! पत्थरों को बना डाला देवतापुजारी जैसे स्वयं पत्थर हुए ! कह रहा था

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कहानी

कफ़न (प्रेमचंद)

सर्दियों का समय था। एक झोपड़ी के दरवाजे पर बाप-बेटा बुझी हुई आग के सामने बैठे हुए थे। झोपड़ी के अंदर बेटे की पत्नी बुधिया

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रिश्तों की बात हो।

जिस्मों के भीड़ में अब रिश्तों की बात हो, हैवानियत से मिलचुके अब  फरिश्तों की बात हो। मुहब्बते सरजमीं से कर   लाखों ही  मर-मिटे, अब

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