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हम छले गये

ज़िन्दगी तो त्रासदी हुई उन्हें मधुर गीत चाहिए! आँखों पर पट्टियाँ पड़ीं कोल्हू के बैल बने हम वंचना के वृत्त में फँसे खींच रहे बोझ

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झूमती फूलों भरी डाली लिखें

झूमती फूलों भरी डाली लिखें हर शजर के लिए हरियाली लिखें । सूर्य-किरणों के लिए सादर नमन अमरबेलों के लिए गाली लिखें । रू-ब-रू है

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भूख

भूख झेलना भूख पर भाषण बेलना दो विपरीत बातें हैं बरखुरदार ! चाहे जितनी बार ‘ आग ‘ कहिए जीभ को आँच तक नहीं आती

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इस सफ़र में

ज़िन्दगी के इस सफ़र में धूप भी है- छाँह भी । कंटकों की सेज सोना ख़्वाब फूलों के संजोना मुस्कुराना आँसुओं में हर्ष में पलकें

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ओ प्रिये !

अहं जब होकर तरल है ढुलक जाता अश्रु बनकर याद आती है तुम्हारी ओ प्रिये! जब कभी लगता है घिरने दिन में ही आँखों के

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कुसुम खिलाना है

गीतों में भर-भर कर /जीवन-राग सुनाना है जो सोया मुँह फेर समय से /उसे जगाना है। सत्पथ पर ही चलकर हमको/मंज़िल तक जाना है बेशक

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डर

बाहर कम अधिक- अधिक भीतर कायम है डर तिरती बर्फ जैसे जल पर घने अँधेरे में दीख जाती है औचक सामने कोई रस्सी सिहर जाता

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