कैसी है माया(दोहें)
कैसी है माया तिरी , कैसा है ये जाल । बदन गठरिया पाप की , प्राणों में सुकताल । या तो खुद प वार करे
कैसी है माया तिरी , कैसा है ये जाल । बदन गठरिया पाप की , प्राणों में सुकताल । या तो खुद प वार करे
सांसों का दरिया बहे , बंजर तन के बीच । पुण्यों की रसधार से , चल कर्मों को सींच । प्यारी सच्चाई नहीं , प्यारा
प्रेम नदी रस की भरी , सूखे दोनों तीर । तुम भी वहां अधीर हो , मैं भी यहां अधीर । प्रेम सदा ही नूतन
बरसों से बेनूर है , खुशियों का फानूस । किस्मत होती जा रही , दिन पर दिन कंजूस । दुनिया के बाज़ार में , मैं
हमें सुनाती ज़िंदगी , तन्हाई का गीत । भरते-भरते उम्र की , गई गगरिया रीत । मेघों के संग आज फिर , उड़ी तुम्हारी याद
मिटा अंधेरा रात का , उतरी मन में भोर । आंखों में कलियां खिलीं , नयनों नाचे मोर । उड़ती फिरती बाग में , संग
ढूंढ रहा था मन जिसे,होकर बड़ा उदास,नहीं दिखाई दे रही,लिया आज अवकाश।लिया आज अवकाश,हमेशा मुझे सताए,सबसे करती बात, नहीं यह मुझको भाए।बना बहाने रोज, झूठ
एक तमन्ना मर गई , होते होते शाम । तड़प तड़प कर आ गया , इस दिल को आराम । चटकी कली गुलाब की ,
बचपन न रहा है,न जवानी रहेगी, सदा अपनी हसीं ये, कहानी न रहेगी । सब छूट जायेगा, यहीं का यहीं पर, तेरे वजूद की कोई,