पद्य-रचनाएँ

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अनुदित

पतझड़ सावन बन जाता है

दुआओं से झोली भरकर जब जीवन मुस्कुराता है।सारी बलाएं टल जाती पतझड़ सावन बन जाता है।पतझड़ सावन बन जाता है रोज शिवालय शिव की पूजा

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गज़ल

रह जाते हैं

यादों के आईनों में रह जाते हैं ।जाने वाले आंखों में रह जाते हैं । ख़ुशबू बन कर उड़ते हैं फिर बाग़ों में ।तितली के

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गज़ल

एक ग़ज़ल मेरे ताज़ा संग्रह ” क्या मुश्किल है ” से ….. सामने बैठी रहो तुम इक ग़ज़ल हो जाएगी ।ज़िन्दगी मेरी यक़ीनन अब सफल

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गज़ल

सम्हालो

ये रंगीन कागज़ के रिश्ते सम्हालो ।तुम अपनी वफ़ाओं के तिनके सम्हालो । महकने से पहले कहीं झर न जायें ।मुहब्बत के मासूम गुंचे सम्हालो

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गज़ल

ग़ज़ल:-अगर कह दो

इसी तस्वीर के कदमों में दिल रख दूं ,अगर कह दो ।तुम्हे अपनी मुहब्बत का ख़ुदा मानूं , अगर कह दो । तराशे लब, हसीं

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कविता

जीवन

जीवन पुष्पों की पंखुड़ी जैसी नहीं होती,यंत्रणा देने वाली कांटे, चुभती रहती है।मृत्यु की सेज में जो जाना भी चाहों,न जाने क्यों, ज़िंदगी और लंबी

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