कविता

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पाके आज इतराई होगी

जिंदगी आज कितनी सजी होगीबाद मुद्दत के जब मिली होगीदिल में उठा होगा तूफान नयाखुद संभाले नहीं सभली होगीप्यार जैसे ही उसका मिला होगाकली पुष्प

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थे जमाने प्यार के

जमी पर चांद उतरेगा फलक से तारे तोडेगेबनाया झील सा बिस्तर जमाने प्यार के थे ओखूबसूरत अंकुरित था बीज दिल में जो पलाप्यार में जो

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नास्तिकता का उदय

नास्तिकता यू ही नही उभरती हैजब अंग–अंग छलती हैजब अंग–अंग तड़पती हैजब अन्याय के आगे आसमान असहाय हो जाता है !जब निश्चल पवित्र मन परईश्वर

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धरती महरानी (अवधी कविता)

सावन मा धरती महरानी सजि धजि छम छम बाजत हीं राति गगन जब उवै अंजोरिया दुलहिन जयिसै लागत हीं कुलि वरि घनी हरियरी छायी नदिया

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यूं लिबास मुझसे

यूं लिबास मुझसे उतारा नहीं गया,हर ज़ख्म मुझसे मेरा दिखाया नहीं गया । होठों पे दुःख के राग सभी गुनगुना गए,एक दर्द मुझसे मेरा सुनाया

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ज़िंदगी की किताब के पन्ने

ज़िंदगी की किताब के पन्ने,उड़ते हैं , फड़फड़ाते हैं ।कभी किसी स्थित परिस्थित में,फट जाते हैं , उखड़ जाते हैं । लेकिन किताब के हर

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जल ही जिंदगी है

जल नही,कल की जिंदगी हैबचा लो जितनी उतनी ही जिंदगी है ।बूंद –बूंद तरसना पड़ेगाएक दिन पानी के खातिरकल सुहावन रहे बसयही तो जिंदगी है

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