कविता

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अपने हौसलों से उड़ान भर लूंगा

कीमती अश्क कभी आंख से जो छलकेगाडूब कर भाव में दिल से सदा नहा लूंगाबिखेर करके खुशबू रात सजा शबनम कीजला के दीप प्रेम दिल

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नास्तिकता का उदय

नास्तिकता यू ही नही उभरती हैजब अंग–अंग छलती हैजब अंग–अंग तड़पती हैजब अन्याय के आगे आसमान असहाय हो जाता है !जब निश्चल पवित्र मन परईश्वर

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कान्हा तोहार मुरलिया

कान्हा तोहर मुरलीया जब जब बाजेतब–तब पनघट तीरे राधा नाचेकान्हा तोहर मुरलीया जब जब बाजे। मोर ,पपिहा सब मधुर स्वर में मगनधरती ,आकाश में उमड़ती

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महज एक दिल के कोने में

तुम्हारे कर्म शामिल थे तुम्हारे गगन छूने मेंमहज एक भाग्य तेरा था ना तुझको पंख देने मेंजमी तैयार की थी जब तुम्हारे कर्म फूलों कीतभी

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शिक्षक

गुरु है सरलता में गुरु है प्रखरता मेंज्ञान गंगा गुरु का ही पावन फुहार हैगुरु का ही ज्ञान इस जगत में छाया हुआगुरु से प्रकाशित

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श्री कृष्ण जन्म

हुआ जन्म था जेल में उनका नंद बबा ने पाला थासो गए पहरेदार वहां के खुला गेट का ताला थाकाली रात अंधेरी में तो जमुना

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ज्योतिर्मान है हिंदी

जगत की शान है हिंदी मेरा अभिमान है हिंदीहमारी मातृभाषा देश की पहचान है हिंदीहुआ है जन्म संस्कृत से संस्कृति की जो पोषक हैभरा जिसमें

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हर कर्म का श्री गणेश तुम्ही हो

सुत गौरी शिव शंकर शोभित रिद्धि सिद्धि साथ लिएबढ़कर मात पिता है जग में कहकर चारों ओर फिरेआज चतुर्थी जन्मदिवस की जो अनुपम बेला आईनिश

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नया एक गुल खिलाओ तो कभी जाने

मिलाकर नैनो से नैनाकरो बातें तो हम जानेना हो ओठो पे कंपनमौन दो उत्तर तो हम जानेसमझ कर मन की पीड़ा कोबहावो प्रेम की नदियांभरा

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