कविता

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प्रथम चरण बन जाओ

भाव में डूब कहता, दिल के द्वार आ जाओ खुले प्रतीक्षा में पट ,स्वास्तिक बना जाओ तुम्हारी याद में, डूबी छलकती हैं आंखें भरे हुए

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भूल को सुधार ले

आओ आज जिंदगी की भूल हम सुधार लेजो भरा है द्वेष मन में आज हम निकाल देसब की मुस्कुराहटों पे आज दिल निसार देकलियां जो

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अपने हौसलों से उड़ान भर लूंगा

कीमती अश्क कभी आंख से जो छलकेगाडूब कर भाव में दिल से सदा नहा लूंगाबिखेर करके खुशबू रात सजा शबनम कीजला के दीप प्रेम दिल

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नास्तिकता का उदय

नास्तिकता यू ही नही उभरती हैजब अंग–अंग छलती हैजब अंग–अंग तड़पती हैजब अन्याय के आगे आसमान असहाय हो जाता है !जब निश्चल पवित्र मन परईश्वर

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कान्हा तोहार मुरलिया

कान्हा तोहर मुरलीया जब जब बाजेतब–तब पनघट तीरे राधा नाचेकान्हा तोहर मुरलीया जब जब बाजे। मोर ,पपिहा सब मधुर स्वर में मगनधरती ,आकाश में उमड़ती

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महज एक दिल के कोने में

तुम्हारे कर्म शामिल थे तुम्हारे गगन छूने मेंमहज एक भाग्य तेरा था ना तुझको पंख देने मेंजमी तैयार की थी जब तुम्हारे कर्म फूलों कीतभी

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शिक्षक

गुरु है सरलता में गुरु है प्रखरता मेंज्ञान गंगा गुरु का ही पावन फुहार हैगुरु का ही ज्ञान इस जगत में छाया हुआगुरु से प्रकाशित

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