जाने क्यों अकसर लगता है
जाने क्यों अकसर लगता है अपनों से ही डर लगता है! कठिन समय है, दग़ाबाज भी बातों में दिलबर लगता है! हासिल है जो सीप-शंख-सा
जाने क्यों अकसर लगता है अपनों से ही डर लगता है! कठिन समय है, दग़ाबाज भी बातों में दिलबर लगता है! हासिल है जो सीप-शंख-सा
अनमना दिन/हाँफती हवा न चमक , न चहक फैली हुई दूर तक चुप्पी की चादर ! कोई पंजा- अदृश्य,अरुण रेंगता है लताओं , शाखों पर
सेमल के फूल लाल -लाल , कितने लाल ! रंग दिये फागुन ने मौसम के गाल ! झर गया पुरानापन पीत पत्र संग रंग-रूप नया-नया,नयी
चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?जितने पल हासिल हमें हैं प्यार केवल प्यार हो । सजल हों कादंबिनी-सा ,सरल शिशु-मुस्कान- सावचन में मन हो
पावन धरती यह बिहार की इसको प्रनमन ! वैशाली ने अखिल विश्व को नव गणतंत्र दिया है महावीर ने मानवता को अमृत मंत्र दिया है
किनारे ही बैठ केवल कुलबुलाना है कि साथी पार जाना है ? है हवा प्रतिकूल,विस्तृत पाट,धारा भँवर वाली बधिर बाधाएँ- करें हम प्रार्थना या बकें
तुम्हारी याद जैसे घने जंगल में भटके हुए पिपासाकुल बटोही के कानों में बज उठे किसी निर्झर की आहट का जलतरंग ! तुम्हारी याद जैसे
छा गये आकाश में बरसात के बादल ! गरजते , नभ घेरते ये जलद कजरारे झूमते ज्यों मत्त कुंजर क्षितिज के द्वारे बजा देंगे हर
बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा ! आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ कहिए उस से हाथ
बाज़ारी आँधी में जीवन-मूल्य हुए तिनके ! बाहर- बाहर चमक-दमक भीतर गहराता तम दीमकज़दा चौखटों पर लटके परदे चमचम संवेदन-स्वर क्षीण-क्षीणतर खनक रहे सिक्के !