तुम्हारे साथ
तुम्हारे साथ आता है एक मौसम मेरे पास रंग-रूप-सुवास का मौसम तृप्ति-विश्वास का मौसम जीवन के गहरे स्वीकार-सत्कार का मौसम मौसम अछोर संवादों का मयूरपंखी
तुम्हारे साथ आता है एक मौसम मेरे पास रंग-रूप-सुवास का मौसम तृप्ति-विश्वास का मौसम जीवन के गहरे स्वीकार-सत्कार का मौसम मौसम अछोर संवादों का मयूरपंखी
पावन धरती यह बिहार की इसको प्रनमन ! वैशाली ने अखिल विश्व को नव गणतंत्र दिया है महावीर ने मानवता को अमृत मंत्र दिया है
सुर्खियाँ ढो रहीं वहशत प्रीत ख़ातिर हाशिये हैं मेमनों के मुखौटों में घूमते अब भेड़िये हैं ! चबाते नाकों चने जो नेकियों की राह चलते
है समष्टि चेतना का नाम कुँवर सिंह आदमी की मुक्ति का पैगाम कुँवर सिंह पुत्र वही मातृ-क्षीर की रखे जो लाज मातृभूमि-भक्ति का परिणाम कुँवर
बुलबुले-सा बनता-मिटता जाएगा शिकवा-गिला टूटने पाये न अपने स्नेह का यह सिलसिला । व्यर्थ की बातों में बहकेंगे-बँटेंगे हम अगर ध्वस्त होगा किस तरह फिर
नये-नये उत्पाद /रंग-बिरंगे दूरदर्शनी सतरंगे परदे पर विज्ञापन-बाढ़ ! एक को ठेलती दूसरी लहर तीव्रतर भारी शोर है भीषण होड़ है ! एक दाँत चमका
कोई मौसम हो,जाने क्यों पतझर लगता है! अपने घर में ही अनजाना-सा डर लगता है! कितना छोटा और अनिश्चित कितना जीवन ऊब, उदासी,उलझन कितनी-कितनी अनबन
हर शख़्स है तना हुआ कमान की तरह अपने ही पेश आ रहे अनजान की तरह। जिस घर को सजाने में मैं ख़ुद बिखर गया
बहुत रस लिया पर-निन्दा में ख़ुद में कब झाँकेंगे हम? तन्द्रिल, निद्रित रहे आज तक आख़िर कब जागेंगे हम? नकली रुदन,हास नकली है चढ़ा मुखौटा
यह जीवन पथ आसान नहीं। झंझा झकझोरती है पल-पल, अमावस्या की काली रातों में, है गात ,कांप जाते देखो- हीम मिश्रित ठंडी वातों से। कंपकंपाती