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गज़ल

दर्द दुहरा ग़ज़ल में पलता है , आपका मन महज़ बहलता है! रेत आँखों में ख़्वाब गुलशन के , ज़िन्दगी की यही सफलता है। हमको

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कहाँ हो तुम?

आक्षितिज पाँक्त हैं देवदार फुनगियों पर आसमान उठाये! पास की घाटी में गा रहा निर्झर अप्रतिहत ऊपर और ऊपर वातायनों में घुस रहे हैं दल

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बादल आये

प्यासी धरती का आमंत्रण बादल आये ! मगन मयूरों का मधु नर्तन बादल आये ! अम्बर से अमृत छहरेगा रसा-रूप नित-नित निखरेगा मुरझाये सपने हरिआये

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पिंजड़े का सुगना

चमचम कटोरी में दूध-भात खाता है बाअदब पुकार कर जगाता है स्वामी को सुबह-सुबह पिंजड़े का सुगना फिर राम-नाम गाता है ! धोंसले की झंझट/

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चाँदी के फूल

हरसिंगार-टहनी पर चाँदी के फूल खिले जाने किन सुधियों में औचक ये होंठ हिले ! राहें थीं विजन-विजन थका-थका बोझिल मन ऐसे में , कैसे

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गज़ल-सामने जो बहुत मीठा बोलता है

सामने जो बहुत मीठा बोलता है वही पीछे में ज़हर भी घोलता है! दिल भरा है ,पर सुनायें क्या,किसे? यहाँ तो हर शख़्स जेब टटोलता

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चिड़िया

क्या चाहती है चिड़िया ? चोंच भर दाना/आज़ाद उड़ानें हरी -भरी डाल पर तिनकों का छोटा-सा आशियाना चाहती है चिड़िया सघन कुंज/ फूले-फले वाटिका-बाग बालियों

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सुलगता अलाव

अधनंगे लोगों का वृत्त में जमाव ताप तनिक , धुआँ अधिक सुलगता अलाव । किस्सों – बुझौवलों से बने नहीं बात मालिक के सूद सरिस

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प्रकृति-पांचाली

कंबलों को तहियायें,समेटें रजाइयाँ मलयानिल मन्द-मन्द लेता अंगराइयाँ ! प्रकृति-पांचाली का पत्र-चीर है अछोर शिशिर बना दुःशासन – थक गयी कलाइयाँ । रूखी इन शाखों

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