
मंचों का किरदार हूं
कलम का पुजारी, मनमौजी फनकार हूं।साधक हूं शारदे का, वाणी की झंकार हूं। शब्दों की माला बुनता, कोई कलमकार हूं।गीतों की लड़ियों में, सुर छेड़ती
कलम का पुजारी, मनमौजी फनकार हूं।साधक हूं शारदे का, वाणी की झंकार हूं। शब्दों की माला बुनता, कोई कलमकार हूं।गीतों की लड़ियों में, सुर छेड़ती
तुम्हारी यादों की रोशनी में सफ़र ज़िंदगी का तय करेंगेजहाँ कहोगी वहीं पे ख़ुद को तुम्हारे में हम बिलय करेंगे रहेंगे बन के तुम्हारा साया
दीवारो-दर से जिसकी सदा गूँजती रहीमेरी निगाह घर में उसे ढूँढती रही अहसास था ख़याल तसव्वुर यक़ीन थाकिस किस लिबास में वो मुझे पूजती रही
दुल्हन न बन सकी कभी ख़ुद की निगाह मेंजो भी मिला वो ले गया ख़्वाबों की राह में छोड़ा है मुझको लाके कहाँ मेरे मेहरबाँक्या
हर खुशी ही रेत सी हरदम फिसल जाती है क्यूँहर घड़ी अब जिंदगी की ग़म में ढल जाती है क्यूँ थाम कर के हाथ जिसका
अभी तो शाम बाकी है जरा सूरज ये ढलने दोचले जाना कहाँ रोका है चंदा तो निकलने दो नहीं रोको नहीं मुझको मैं तो मस्ती
साथ निभाए वही मीत है जीवन की यही रीत है, साथ निभाए वही मीत है।नैनों से नेह बरसे, दिल से दिल की यही प्रीत है।साथ
साज़े-दिल पर ग़ज़ल गुनगुना दीजिएशामे-ग़म का धुँधलका हटा दीजिए ग़म के सागर में डूबे न दिल का जहाँनाख़ुदा कश्ती साहिल पे ला दीजिए एक मुद्दत
अभी वो निकली है मयकदे से अभी बहकना है यार बाकीअभी कदम पड़ रहे सही है अभी फिसलना है यार बाकी अभी बहारों के साये
एक दिन आयेगाऔर हम सब चले जाएंगे। कहां जायेंगेपता नही । पर उस टाइम कोईरोने वाला नही होगा। पर कोने में पड़ी होंगीकुछ कविताएं। जो