पद्य-रचनाएँ

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दोहा

होली (दोहा)

होली के त्यौहार की, पौराणिक पहचान। महा भक्त प्रह्लाद की, कथा उचित उनवान।। श्रीहरि का वह भक्त था, निर्मल और विशुद्ध। हिरण्यकश्यप हो गया, स्वयं

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गीत

होली – गीत (सरसी छंदाधारित)

होली का ये मास सुहाना, लगा गुलाबी रंग।पीकर झूम रहे हैं देखो, नशा चढ़ा जब भंग॥ होली में बहका सजना तब, झूमें गाते फाग।उमड़ रहा

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पद्य-रचनाएँ

तकरार होली में

सुनाऊँ क्या तुम्हें किस्सा किया तकरार होली में ।उठाया हाथ में बेलन पड़ी थी मार होली में ।पड़ोसन पर फिदा था वो सनम मेरा सलोना

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दोहा

होली पर दोहे-रजनीगंधा की महक

रजनीगंधा की महक, हृद में लगती आग। राधा, कान्हा के बिना, कैसे खेले फाग॥1॥ तन – मन में कान्हा बसा, मनहर लगता फाग। श्याम हृदय

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गज़ल

इस  बार  होली  में

मचेगी धूम  खुल कर  के  यहाँ  इस  बार  होली  में कि  बाहों  में   जो  आयेंगे  मेरे  सरकार  होली   में जो  मेरे  रूबरू   होंगे    मेरे    दिलदार 

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कविता

बसंत पंचमी

बसंत पंचमी आई है खुशियों की लहरे छायी है इस दिन अवतरित हुई मां सरस्वती कहते है कला, विद्या की देवी मौसम भी है खुश

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कविता

गुलाबी होली

हर रंग में तू ही तू हैवो कौन जगह जहां तू नहीं,भोर की लाली में तुमरंग हरा बन, हरियाली में तुम,चांद से चमकीलेतुम सूरज से

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कविता

प्रेम का अबीर

बेरंग से रंग ढूंढने, बाज़ार में न जाएअपनों की प्रीतरंग, घुल मिल जाए,और होली की रौनक बढ़ाए… हर सुबह फिर गुलाबी होगीहर शाम फिर इन्द्रधनुष

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