मुक्तक

Category: मुक्तक

पद्य-रचनाएँ

मुक्तक

कोई आबाद करता है कोई बरबाद करता है। सदा हम भूलते उसको जो इसे आज़ाद करता है। खडा हूँ एक ऐसी ही बेगानों की मैं

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पद्य-रचनाएँ

परवरिश

पालते लाड प्यार से, ममता दुलार से।खुशियों बहार से, मीठी पुचकार से।रखे औलाद को, दुनिया में मां बाप।आंखों का तारा हमे, दिलों के तार से।

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उमंगों की पतंगे उड़ाओ

उमंगों की पतंगे लेकर आओ मचाए हम भी शोर।गली गली घूमते गाते चले आई है सुहानी भोर।जीवन में उड़ानें भर आओ चले खुशियों की ओरप्यार

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पद्य-रचनाएँ

ठिठुरन(मनहरण घनाक्षरी)

सर्द हवा ठंडी ठंडी, बहती है पुरजोर।ठिठुरते हाथ पांव, अलाव जलाइए। कोहरा छा जाए जब, शीतलहर आ जाए।कंपकंपी बदन में, ठंड से बचाइए। सूरज सुहाती

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टूटे मन के भ्रम

टूटे मन के भ्रम सभी,हुआ नहीं विश्वास, प्रण कर ले अब तो मना,नहीं किसी की आस। नहीं किसी की आस,भरोसा खुद पर करना, रिश्ते तो

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एक एक ग्यारह बने

एक एक ग्यारह बने, तीन पाँच को छोड़ भाग घटाना त्याग कर, अपना गुणा व जोड़ अपना गुणा व जोड़, शून्य को साथ मिला कर,

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मीत

बस गए जो दिल में आके दिल के वही मीत थेदिल से जो निकल गए वो ढोंग के प्रतीक थेस्वार्थ भाव जब उगा भावना के

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