मुक्तक

Category: मुक्तक

पद्य-रचनाएँ

तकरार होली में

सुनाऊँ क्या तुम्हें किस्सा किया तकरार होली में ।उठाया हाथ में बेलन पड़ी थी मार होली में ।पड़ोसन पर फिदा था वो सनम मेरा सलोना

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पत्नी

पत्नी रहती है इंतजार में अब वो भी प्यार में कहती है खटूस हर वक्त इजहार में मां के बाद पत्नी व्यवहार में हर जगह

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होली- मुक्तक द्वय

खूब घुट रही प्रिय के प्रेम की लाली भंग रंग।कान्हा होली खेलन आ रहे प्रिया संग रंग ।स्पंदित मन छलक रहा आगमन से तुम्हारे,परमात्म मिलन

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लंका जलाइए(घनाक्षरी)

रावण दुष्ट पापी नीच अथवा कुकर्मी था,उसकी वो सजा पाया,उसे भूल जाइए।आज की दशा को देखो,गली गांव नुक्कड़ में,उठेगी नजर यदि,रावण ही पाइए।होती है गलानि

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ज्ञान दायिनी हे मातु(घनाक्षरी)

ज्ञान दायिनी हे मातु,वीणा पाणि सरस्वती,दया दृष्टि थोड़ी सी तो,मुझपे दिखाइए।मैं अजान बालक हूं चरणों में मातु तेरेज्ञान चक्षु खोल मेरो मन हरसाइए।धवल वस्त्र धारिणी

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हे दीनबंधु(घनाक्षरी)

हे दीनबंधु कृपा सिंधु वीर बलदाऊ कै,विनती हमारी प्रभु आप सुन लीजिए।जगत के पाप हरो सबके संताप हरो,आइए प्रभु जी फिर अवतार लीजिए।गीता वाला ज्ञान

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तन-मन-धन(घनाक्षरी)

तन-मन-धन सब,वार जिस दिन आप,काम कोई करने को,आगे बढ़ जाते हैं।पग-पग पर जब,आ जाए चुनौती कोई,फिर भी न पग आप,पीछे को हटाते हैं।आती परेशानियां हों,

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माँ की जयकार(घनाक्षरी)

गांव गांव गली गली नगर चौराहे देखो,हर दिशा मां की जयकार ही सुनाई है।जिधर भी नजरें देखोगे उठाके उधर,मातु दुरगे की भव्य मूरति सजाई है।रखते

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श्री गुरु चालीसा

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:॥ दोहा- हाथ जोड विनती करूँ, दो विद्या का दान। इससे ज्यादा क्या कहूँ, मेरे गुरुवर

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