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योग की मानव जीवन में आवश्यकता
संसार में सामान्य रूप से प्रवृत्ति देखी जाती है कि प्रत्येक प्राणी सुख प्राप्त करना चाहता है एवं दुःखों से बचना चाहता है। मानव भी
संसार में सामान्य रूप से प्रवृत्ति देखी जाती है कि प्रत्येक प्राणी सुख प्राप्त करना चाहता है एवं दुःखों से बचना चाहता है। मानव भी
पुरुषोत्तम राम, श्री कृष्ण की जन्मभूमि एवं गंगा, यमुना, सरस्वती की बहती धारा से पवित्र हमारा उत्तर प्रदेश भारत वर्ष का जनसंख्या की दृष्टि से
योग एक प्राचीन भारतीय विद्या है। इसका मूल स्रोत वेदों में प्राप्त होता है, यथा- योगेयोगे तवस्तरं[१], स धीनां योगमिन्वति[२] एवं युज्यमानो वैश्वदेवो युक्तः प्रजापतिर्विमुक्तः
सदियों से चली आ रही पितृसत्ता के अंतर्गत स्त्री- जाति पुरुष के अधीन रही है। पुरुष ने सदैव स्त्री के जीवन से संबद्ध विभिन्न आयामों,
कोई भी उन्नत से उन्नत तकनीक शिक्षक की जगह नहीं ले सकती। शिक्षक का काम केवल पढ़ाना-लिखाना ही नहीं होता बल्कि बच्चे का चहुंमुखी विकास
किसी भी देश या प्रदेश के साहित्य के मूल में जनता की चित्तवृत्ति ही होती है। यह चित्तवृत्ति संस्कार, मूल्य तथा आस्था से युक्त होती
मां ! अर्पित है चरणों में, सादर नमन, वंदन !! मां तो सिर्फ मां होती है। उसकी बराबरी दुनिया की कोई चीज नहीं कर सकती
बिहार के लिए एक कहावत बेहद प्रचलित है- “एक बिहारी सौ पे भारी।” बौद्धिकता यहां के कण-कण में विद्यमान था। लेकिन अफसोस ऋषियों, मुनियों एवं
“भूलों नहीं अहमियत रिश्तों की कभी,ये वो नाज़ुक डोर हैं जों जुड़ती नहीं फिर से।” वर्तमान युग में रिश्ते-नातों की अहमियत कम होती जा रही
शिक्षक से हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। शिक्षक वह व्यक्ति है जो हमें जीवन में उपयोग में आने वाली हर चीज़ें सिखाता है। इसमें किताबी