गज़ल-शबनमी शोले वस्ल-ए- शबाब और क्या क्या
शबनमी शोले वस्ल-ए- शबाब और क्या क्या। लचकती शाख पे ताजा गुलाब और क्या क्या। जमाले रुख पे कातिल अदा नशीली नज़र ज़मीं पे आगया
शबनमी शोले वस्ल-ए- शबाब और क्या क्या। लचकती शाख पे ताजा गुलाब और क्या क्या। जमाले रुख पे कातिल अदा नशीली नज़र ज़मीं पे आगया
निर्जनों में भी सहज मधुमय सदा सुखवास करती। प्रेम दीप की अमर ज्योति अंतसों में प्रकाश करती।। झंझावातों के भंवर से पार करती, मुक्तिपथ सुलभा
मैने मतलब नहीं रखा जहाँ से। दिले नादान ये हलचल कहाँ से। मकान सूना सूना लग रहा है, कोई रुखसत हुआ रोकर यहाँ से।। पुराने
बूढ़े बरगद के चबूतरे पर घनेरी छांव में। देखो फिर एक आज बंटवारा हुआ है गांव में।। कुछ नये सरपंच तो कुछ पुराने आये, कुछ
अक्सर मुझे आज़माने की खातिर। वो जलता रहा खुद जलाने की खातिर।। मुहब्बत में आये तो इक बात समझी, ये आंखें हैं आंसू बहाने की
नव वर्ष मंगलमय हो नव वर्ष में अति हर्ष हो आनन्दवृष्टिअपार हो। मेरे हृदय में आपका अनवरत साक्षात्कार हो।। नव वर्ष ० उपवन सुगंधित हो