घरनी मुझसे रूठकर (कुण्डलिया)
घरनी मुझसे रूठकर, चली गई ससुराल। गया बुलाने एक दिन, आगे सुनिए हाल। आगे सुनिए हाल, सामने साली आई। अनुपम शिष्टाचार, साथ में लिए मिठाई।
घरनी मुझसे रूठकर, चली गई ससुराल। गया बुलाने एक दिन, आगे सुनिए हाल। आगे सुनिए हाल, सामने साली आई। अनुपम शिष्टाचार, साथ में लिए मिठाई।
अन्तर्द्वंदों के शिखर पर खड़ा सा मौन हूँ मैं। न जाने कौन हूँ मैं…… गहन तिमिरान्ध में प्रकाश हूँ मैं, छलकते आंसुओं की आस हूँ
कमबख्त दिल से हो गये लाचार एक दिन। मैंने भी किया इश्क का इज़हार एक दिन।। एक खूबसूरत कली मेरे दिल को भा गई थी
सुवासित शीतल सुखद बयार, भ्रमर मकरंद चखे स्वछन्द। लोग कहते हैं तुम्हें बसंत, प्रणय प्रण के अद्भुत आनंद।। सरसो के पीत हेम से पुष्प, कोयल
कंचन के कंगन की किकिंणि की खनकार, कर्णप्रय होत मन अति हरषात है। खेलत अहेर मार मारत है पंच सर, कलियन पर अलि देखि मन
कनक कटोरी कर्ण कर्णफूल किंकिणि सुनि, कोटि-कोटि काम कूदि कूदि चलि आवत है। खन-खन-खनकार खंजनिका के कंगन करें, सृष्टि में संगीत की सुर सरिता बहावत
शेष सुता लंकेश बहू घननाद प्रिया लंका युवरानी। सती सुलोचनि चारों युग में अमर रहेगी तेरी कहानी।। साज कर चतुरंगिनी इन्द्रदमन जब चलने लगा, मान
सितम यूं मुझपे ढा रहा है कोई। नज़र झुका के जा रहा है कोई।। बढ़ी धड़कन बता रही मुझको, मेरे दिल में समा रहा है
चन्दन सा बदन लबों पे ताजा गुलाब है। कुछ लोग कह रहे के ये माहताब है। जिस पड़ी उसे फिर होश कभी न हुआ, ये
कट-कट दन्त करें झर-झर कुहासा गिरे, कोमल बदन शीत थर थर कँपावत है। खर पतवार सब बीनि के एकत्र करें, सूखी घास ठण्डी में सब