साँची आंखें
शब्द से चेतना तक फैले हुए हैंहर तरफ नयन ही नयननयनो की अपनी लिपिअपनी भाषा अपनी विधाअपनी सूक्तियांअपने दोहे अपनी चौपाइयांनयनो के अपने सरोवरअपने सागर
शब्द से चेतना तक फैले हुए हैंहर तरफ नयन ही नयननयनो की अपनी लिपिअपनी भाषा अपनी विधाअपनी सूक्तियांअपने दोहे अपनी चौपाइयांनयनो के अपने सरोवरअपने सागर
परेशान आदमीशायद जानता ही नहींजहाँ राह खत्म होती हैवहीं शुरू होती हैनई मार्ग रेखाएंबस दो कदम और चलतातो तसव्वर से ज्यादा मिलने वाला थाअसबाब हो
मनुष्य अभीप्साओं का पिंड ही तो हैजीवनभर चला करता हैतमन्नाओं का सिलसिला ।एक के पास दूसरी इच्छा।अंतहीन सफर।तुष्टि अनवरत खोज ।एक बसेरा निकेत बन जाएतो