त्रिभुवनेश भारद्वाज "शिवांश"
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त्रिभुवनेश भारद्वाज "शिवांश"

त्रिभुवनेश भारद्वाज रतलाम मप्र के मूल निवासी आध्यात्मिक और साहित्यिक विषयों में निरन्तर लेखन।स्तरीय काव्य में अभिरुचि।जिंदगी इधर है शीर्षक से अब तक 5000 कॉलम डिजिटल प्लेट फॉर्म के लिए लिखे।

फूल गवाह है निशा के संघर्ष का

जब पूरब की कोंख सेप्रगट होगा प्रकाश पूंजऔर होगी चितवतखग वृन्दों की गूंज ।तब आँख बरबस खुलेगीसृष्टि का अनुगान करने ।चमन सोया नहीं थाजब तुम

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चक्रव्यूह

चक्रव्यूह के हर द्वार परमैं अकेला ही खड़ा था,महारथियों कीसमवेत सेना के सम्मुख,तलवारों की नोंक सेअपने को बचाता हुआअंधी सुरंगों के बीचउजास की रेखाएं ढूंढ

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मजहब

हम सब अपने अपने धर्म के तरफदार हैं मगर धर्म है कहाँ मंदिर में देखा तो मूर्तियां मिली घण्टी,घड़ियाल दीप धूप बत्ती मिली मगर धर्म

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हर सुबह रात की सिसकी है

#Morning with night हर सुबह रात से आती है हर सुबह रात की सुबकी है हर दमक तम का प्रतिबिंबन हर ख़ुशी कष्ट की ललिता

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शांत रुदन

शांत रुदन अन्सुअन भी साथी मेरे ——————————- अरे यह क्या!अचानक बंद हो गई कहाँ गए सब आँसू आँखों के ? सूख गए! आवाज़ें निःशब्द हो

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अतीत के गवाक्ष में नारी

सुनते हैंकथाओं में कभी स्वर्ण युग थेजब चेतनाओं परकोहरा न छाया था गुनाह काजमीन ज्यादा औरलोग कम थेखुला आकाश बेफिक्र होकर देख सकते थेकोई भी

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चेहरे कितने रूपहरे

बस एक चेहरा थाबेशक रूपहरा थाकोई खास किरदार नहींचेहरा भ्रांत,क्लांत,अशांतकिसी परिभाषा में नहींचेहरा जिस परसंवेदना का रेखांकन नहींएक छवि भर हैचेहरे का कोई चरित्र नहींचेहरा

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शफक

वो वक्त जबएक दीर्घ यात्राके बादनिस्तब्ध दिशा पश्चिम मेंअस्ताचल की औरजाते सूरज कीशफक भाव विभोर करती हैंआँख से आत्मा तकएक वन्दनीय छवि उकरआती हैंसौम्यता से

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आवाज उठाओ

एक आवाजपुकार बन उभरीतो हजारों कदमकारवां बन जुड़ गएआग्रह शांत और विनीत थातो क़दमों का शोरसुरीली लय बन गयानारों में सच की आत्मा थी तोघनघोर

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तू गा तो सही मुस्का तो सही

सुबह के पन्नों पर पायीशाम की ही दास्ताँएक पल की उम्र लेकरजब मिला था कारवाँवक्त तो फिर चल दियाएक नई बहार कोबीता मौसम ढल गयाऔर

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