डॉ रवीन्द्र उपाध्याय
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डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?

चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?जितने पल हासिल हमें हैं प्यार केवल प्यार हो । सजल हों कादंबिनी-सा ,सरल शिशु-मुस्कान- सावचन में मन हो

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इसको प्रनमन

पावन धरती यह बिहार की इसको प्रनमन ! वैशाली ने अखिल विश्व को नव गणतंत्र दिया है महावीर ने मानवता को अमृत मंत्र दिया है

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तुम्हारे साथ

तुम्हारे साथ आता है एक मौसम मेरे पास रूप-रंग-सुवास का तृप्ति ,विश्वास का जीवन के गहरे स्वीकार का मौसम ! मौसम अछोर संवादों का मोरपंखी

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पार जाना है

किनारे ही बैठ केवल कुलबुलाना है कि साथी पार जाना है ? है हवा प्रतिकूल,विस्तृत पाट,धारा भँवर वाली बधिर बाधाएँ- करें हम प्रार्थना या बकें

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तुम्हारी याद!

तुम्हारी याद जैसे घने जंगल में भटके हुए पिपासाकुल बटोही के कानों में बज उठे किसी निर्झर की आहट का जलतरंग ! तुम्हारी याद जैसे

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बरसात के बादल !

छा गये आकाश में बरसात के बादल ! गरजते , नभ घेरते ये जलद कजरारे झूमते ज्यों मत्त कुंजर क्षितिज के द्वारे बजा देंगे हर

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खनक रहे सिक्के!

बाज़ारी आँधी में जीवन-मूल्य हुए तिनके ! बाहर- बाहर चमक-दमक भीतर गहराता तम दीमकज़दा चौखटों पर लटके परदे चमचम संवेदन-स्वर क्षीण-क्षीणतर खनक रहे सिक्के !

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