चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?
चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?जितने पल हासिल हमें हैं प्यार केवल प्यार हो । सजल हों कादंबिनी-सा ,सरल शिशु-मुस्कान- सावचन में मन हो
चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?जितने पल हासिल हमें हैं प्यार केवल प्यार हो । सजल हों कादंबिनी-सा ,सरल शिशु-मुस्कान- सावचन में मन हो
पावन धरती यह बिहार की इसको प्रनमन ! वैशाली ने अखिल विश्व को नव गणतंत्र दिया है महावीर ने मानवता को अमृत मंत्र दिया है
तुम्हारे साथ आता है एक मौसम मेरे पास रूप-रंग-सुवास का तृप्ति ,विश्वास का जीवन के गहरे स्वीकार का मौसम ! मौसम अछोर संवादों का मोरपंखी
किनारे ही बैठ केवल कुलबुलाना है कि साथी पार जाना है ? है हवा प्रतिकूल,विस्तृत पाट,धारा भँवर वाली बधिर बाधाएँ- करें हम प्रार्थना या बकें
तुम्हारी याद जैसे घने जंगल में भटके हुए पिपासाकुल बटोही के कानों में बज उठे किसी निर्झर की आहट का जलतरंग ! तुम्हारी याद जैसे
छा गये आकाश में बरसात के बादल ! गरजते , नभ घेरते ये जलद कजरारे झूमते ज्यों मत्त कुंजर क्षितिज के द्वारे बजा देंगे हर
बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा ! आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ कहिए उस से हाथ
बाज़ारी आँधी में जीवन-मूल्य हुए तिनके ! बाहर- बाहर चमक-दमक भीतर गहराता तम दीमकज़दा चौखटों पर लटके परदे चमचम संवेदन-स्वर क्षीण-क्षीणतर खनक रहे सिक्के !