मत शूल की बातें करो
एक मन- अनगिन चुभन,मत शूल की बातें करो ख़ुश्बुओं को भी तलाशो , फूल की बातें करो । बैठकर इस तट लहर गिनने से अब
एक मन- अनगिन चुभन,मत शूल की बातें करो ख़ुश्बुओं को भी तलाशो , फूल की बातें करो । बैठकर इस तट लहर गिनने से अब
बाहर कम अधिक- अधिक भीतर कायम है डर तिरती बर्फ जैसे जल पर घने अँधेरे में दीख जाती है औचक सामने कोई रस्सी सिहर जाता
तीरगी-तीरगी बढ़ रहे ये क़दम चार पल की मधुर चाँदनी के लिए । दरमियाँ दो दिलों के बहुत फासला छू रही है शिखर छल-कपट की
सर्द आहों से क्या भला होगा ये भरम है कि जलजला होगा ओढ़ कर छाँह सो रहा राही दूर तक धूप में चला होगा फूँक
नयनाभिराम/बहुवर्णी विविधगंधी/मनोहारी फूल मुरझा जाते हैं एक दिन धूमिल पड़ जाता है रंग सूख जाता है मकरन्द झड़ जाती हैं पंखुरियाँ ! फिर भी ,
किसको फ़ुर्सत पढ़े-सुनेगा ? फिर भी लिखना है,गाना है ! ख़ुदगर्जी की होड़ मची है मतलब के सब नाते हैं मन में कपट और कटुताएँ
वह नदी का किनारा,वह शाम लिखना एक पाती फिर हमारे नाम लिखना ! अभी तो आग़ाज़ को दें पुख़्तगी हम अभी से क्या बैठकर अंजाम
अँधेरे से आलोक की इस यात्रा में पार करना है एकाकी नदी,वन,पर्वत किसी राजर्षि की सनक पर सवार हो नहीं लेना मुझे स्वर्ग याद है
ताली बजा रहा है कोई कोई बैठ हाथ मलता है हर्ष-विषाद समन्वित जीवन ऐसे ही अबाध चलता है ! स्नेह-स्वांग सब हैं दिखलाते लाभ-लोभ के
बिक गये जो वस्तुओं की भाँति होकर चरण-चाकर रह गये जन के मन में,यश-गगन में आज हैं,कल भी रहेंगे आँधियों का वेग अपने वक्ष पर