डॉ रवीन्द्र उपाध्याय
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डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

झूमती फूलों भरी डाली लिखें

झूमती फूलों भरी डाली लिखें हर शजर के लिए हरियाली लिखें । सूर्य-किरणों के लिए सादर नमन अमरबेलों के लिए गाली लिखें । रू-ब-रू है

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भूख

भूख झेलना भूख पर भाषण बेलना दो विपरीत बातें हैं बरखुरदार ! चाहे जितनी बार ‘ आग ‘ कहिए जीभ को आँच तक नहीं आती

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इस सफ़र में

ज़िन्दगी के इस सफ़र में धूप भी है- छाँह भी । कंटकों की सेज सोना ख़्वाब फूलों के संजोना मुस्कुराना आँसुओं में हर्ष में पलकें

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हमक़दम, हमदम न होगा

हमक़दम, हमदम न होगा हौसला पर कम न होगा । तमतमाये तमस जितना उजाला मद्धम न होगा । बालिए विश्वास – दीपक संशयों का तम

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ओ प्रिये !

अहं जब होकर तरल है ढुलक जाता अश्रु बनकर याद आती है तुम्हारी ओ प्रिये! जब कभी लगता है घिरने दिन में ही आँखों के

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दर्द की परछाइयाँ

दर्द की परछाइयाँ भीड़ में है आदमी पर ढो रहा तनहाइयाँ घेरती हैं ज़िन्दगी को दर्द की परछाइयाँ ! वायदे ,नारे सुनहरे कब निभाएँगे जनाब

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हम ग़ज़ल किसको सुनायें

हम ग़ज़ल किसको सुनायें,बहुत हैं बहरे यहाँ होंठ पर ताले लगे हैं,साँस पर पहरे यहाँ ! सतह पर जो तैरता है मिल रहा मोती उसे

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ख़ैरियत

राह चलते या कहीं बाज़ार में पूछता है ख़ैरियत जब कोई परिचित भर आता है मन सोचता हूँ , खोल कर रख दूँ सभी गोपन-

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खिलता है कहीं एक फूल

खिलता है कहीं एक फूल कुंठित हो जाते हैं काँटे हजार जलता है कहीं एक दीप व्याकुल ढूँढता कोई कोना काँप उठता है अन्धकार कूकती

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कुसुम खिलाना है

गीतों में भर-भर कर /जीवन-राग सुनाना है जो सोया मुँह फेर समय से /उसे जगाना है। सत्पथ पर ही चलकर हमको/मंज़िल तक जाना है बेशक

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