डॉ रवीन्द्र उपाध्याय
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डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

कोहरा

पहन कर चोंगा/ सफेद रोंयेदार सूरज के खिलाफ / निकल पड़ा है अंधकार! कोहरे में गुम हो गयी हैं गलियाँ, राहें बन्द है बच्चों की

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नया साल आया है !

पिछले हैं जख्म हरे ,दहशत का साया है विज्ञापन पर सवार नया साल आया है ! थिरक रहे साहब जी,हल्कू हलकान बहुत नगरों में नाच-गान,

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वसन्त आ गया !

कलियों की कनखियाँ, फूलों के हास क्यारियों के दामन में भर गया सुवास बागों में लो फिर वसन्त आ गया ! मलयानिल अंग- अंग सहलाता

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ऋतुराज का जादू

धूप में वापिस तपिश आने लगी फिर हवाओं में घुली ख़ुशबू ! पतझरी मनहूसियत के दिन गये हर नयन में उग रहे सपने नये ठूँठ

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तुम्हारी याद

तुम्हारी याद जैसे घने जंगल में भटके हुए प्यासे बटोही के कानों में बज उठे किसी निर्झर की आहट का जलतरंग! तुम्हारी याद, जैसे तंग

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गज़ल

दर्द दुहरा ग़ज़ल में पलता है , आपका मन महज़ बहलता है! रेत आँखों में ख़्वाब गुलशन के , ज़िन्दगी की यही सफलता है। हमको

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कहाँ हो तुम?

आक्षितिज पाँक्त हैं देवदार फुनगियों पर आसमान उठाये! पास की घाटी में गा रहा निर्झर अप्रतिहत ऊपर और ऊपर वातायनों में घुस रहे हैं दल

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बादल आये

प्यासी धरती का आमंत्रण बादल आये ! मगन मयूरों का मधु नर्तन बादल आये ! अम्बर से अमृत छहरेगा रसा-रूप नित-नित निखरेगा मुरझाये सपने हरिआये

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गज़ल-कोई नयी शुरुआत हो

आइए, कोई नयी शुरुआत हो गाँठ मन की खुले ऐसी बात हो । लौट आयें गीतवाले दिन मधुर रात आये जो ग़ज़ल की रात हो

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पिंजड़े का सुगना

चमचम कटोरी में दूध-भात खाता है बाअदब पुकार कर जगाता है स्वामी को सुबह-सुबह पिंजड़े का सुगना फिर राम-नाम गाता है ! धोंसले की झंझट/

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