डॉ मंजु सैनी
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डॉ मंजु सैनी

पति-श्री पुष्पेंद कुमार,व्यवसाय -पुस्तकालयाध्यक्ष ग़ाज़ियाबाद में पिछले २५ वर्षों से पब्लिक स्कूल में कार्यरत।कृतियां-1-काव्यमंजूषा2-मातृशक्ति3-शब्दोत्सव4-अंबेडकर(जीवन संघर्ष एवं अनुभूति)4-महापुरुष5-काव्य शब्दलहर6-शब्द किलकारी(काव्यसंग्रह)7- नव कोंपले(शब्दरूप में),सम्मान-- प्राइम न्यूज़ द्वारा कलमवीर सम्मान-विक्रमशिला द्वारा विद्या वाचस्पति सम्मान-अखिल भारत हिन्दू युवा मोर्चा द्वारा सम्मान-श्रीज्योति सेवा मिशन हरिद्वार द्वारा सम्मान-आरोही संस्था दिल्ली द्वारा सम्मान-शांतिकुंज द्वारा सम्मान श्रेष्ठ अध्यापिका सम्मान- विधालय द्वारा सर्वश्रेष्ठ अध्यापिका सम्मान-विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा"कल्पना चावलास्मृति पुरुस्कार-"विश्व हिन्दी रचनाकार मंच" द्वारा उत्तर प्रदेश" महिला रत्न सम्मान"- साहित्यबोध समूह द्वारा"साहित्य मार्तण्ड"सम्मान-दी ग्रामटुडे ग्रुप द्वारा"साहित्य शक्ति" सम्मान-अनेक सहित्य समूह द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,लेखन--अनेक समाचार पत्रों में लेख,कविताएं प्रकाशित-अनेक हिंदी पत्रिकाओं में लेख,कविताये प्रकाशित-अनेक ई-पत्र-पत्रिकाओं में लेखन प्रकाशित-अनेक साहित्यिक समूह में रचनाएं प्रकाशित,Copyright@डॉ मंजु सैनी/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

बसंतोत्सव पर

बसंतोत्सव पर प्रकल्प मेरा संकल्प मेरा…अपनी लेखनी से शब्द रूप मै दे पाउँ…नव प्रभात नव संचार मिलेगाखुशियों का उपहार मिलेगाकलम में मेरी धार रहेगीनित नई

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लो बसंत आया

लो बसंत आयामेरा प्यारा बसंतपेड़ो में नव चेतन लानेलो आ गया वसंतपेड़ो के रूखे अधरों परहरित क्रांति लेकर आयानव सृजन को ततपर प्रकृतिफूलो को खिलाने

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वो बसंत की याद

उस दिन हमारे प्रेम में मानो …ओस की ताजा ताजा हल्की भीगीबरसात थी वह बसंत कीरोपा था हमने यहीँ बस यूँ हीवह सरसों का पीला

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अभ्युदय मिलन का

डूबते सूरज को देख आज कितनी बार डूबी मैं तेरी यादों में कहीं एक आस सी लिए मन में सोचती रही कि अभ्युदय होगा पुनः

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प्रतीक्षारत मैं

आज लेकर एक कोरा कागज़ लिख देना चाहती हूँ अपनी व्यथा या कहूँ कि मन के भीतर कुछ घुमड़ते हुए मनोभाव लगता हैं भर दूँगी

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प्रश्न ही प्रश्न

आख़िर क्या है..? क्यों है ऐसा..? जिंदगी जीने में सही गलत क्या हैं सही गलत के बीच में ऐसा क्या हैं जो दोनो में अलगाव

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आगोश

छिपा छिपा सा राज प्रकृति का जो देता संदेश सूर्यास्त बता रहा है मुझे कि वो चला शाम ढलते ही अंधेरे के आगोश में मिलता

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एकाकार

मन शांत लिए ही स्थिर सी आज बैठ गई थी मानों एकाग्रता में सोच पाऊँगी अपने को व अपने भविष्य को झांक पाऊँगी स्वयं में,

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एकाकार

मन शांत लिए ही स्थिर सी आज बैठ गई थी मानों एकाग्रता में सोच पाऊँगी अपने को व अपने भविष्य को झांक पाऊँगी स्वयं में,

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जीवन तुझपर वार दूँ

विटप बन मैं तुझे , सुख भरी आस दूँ। आ तुझे अपनी कोमल कोमल, डालियों से बाहों के हार दूँ। अपने सारे पत्तो से सारा

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